Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

हरियाणा में गोत्र विवाद

हरियाणा में गोत्र विवाद

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यह परम्परा और आधुनिकता के बीच संक्रमण का मामला है। यूरोप इस दुखद स्थिति से गुजर चुका है। भारत में इस वक्त चार तरह के लोग हैं 1. असहिष्णु आधुनिक तबका (इंडियन्स) 2.जाहिल भारतीय तबका 3. सुसंस्कृत भारतीय 4.सहिष्णु एवं मध्यमार्गी आधुनिक तबका (मोडरेट इंडियन्स) पहले और दूसरे वर्ग में संवादहीनता की स्थिति है। तीसरे - चौथे वर्ग के बीच संवाद एवं सहकार है। यह भारतीय समाज संक्रमण काल से गुजर रहा है। विश्वग्राम में भारत एक उभरती हुई शक्ति है। लेकिन संस्कृति और धर्म के मुद्दे पर भारत में सांस्कृतिक नवजागरण की आवश्यकता है। नई पीढ़ी को संस्कारित करने का उपाय करना होगा। भारत हो या इंडिया चलाना तो नई पीढ़ी को ही है। वह अपनी हद में आस्थाहीन या संस्कारहीन नहीं है। लेकिन संस्कृति की बारीकी समझने का उसे मौका नहीं मिला है। यह समाज, समुदाय और राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नई पीढ़ी को संस्कारित करे। विवाह एक सामाजिक संस्था के रूप में केवल दो व्यक्तियों के बीच प्यार का मामला नहीं है यह एक जटिल सांस्कृतिक अस्मिता का मामला है। यह बहुआयामी संस्था है। गोत्र विवाद ना समझी और संवादहीनता से उपजा विवाद है। दो पीढ़ी आमने - सामने हैं। दोनों में संवाद और आपसी सौहार्द का अभाव है।

इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि पारम्परिक हिन्दू विवाह में जाति के अंदर लेकिन सपिण्ड एवं सगोत्र के बाहर विवाह करने का नियम है। लेकिन यह भी सच है कि हिन्दुओं में 8 प्रकार के विवाह की मान्यता है जिसमें गंधर्व विवाह भी एक है। गंधर्व विवाह प्रेम विवाह का एक रूप है। गंधर्व विवाह में नियमों की छूट है। परन्तु यह हिन्दू समाज की मुख्यधारा में आदर्श विवाह नहीं माना जाता। यदि आप जाति या पंचायत के नियमों को नहीं मानते तो जाति बहिष्कृत किया जा सकता है। कुछ स्थिति में पंचायत से भी बहिष्कृत किया जा सकता है लेकिन मारा-पीटा नहीं जा सकता । जान नहीं ली जा सकती। आज के संदर्भ में गांव से बाहर भी नहीं किया जा सकता। भारतीय संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने सभी नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा करे। जातियों,  पंचायतों, समुदायों को अपने पर्सनल लॉ या सामुदायिक कानून बनाने का अधिकार है लेकिन उस कानून को मानना या नहीं मानना व्यक्ति या परिवार के विवेक पर निर्भर करता है। वह अगर नियम नहीं मानता है तो उसका हुक्का-पानी तो बंद हो सकता है लेकिन उसको प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। पंचायतों के अधिकार की हद है। वे भारतीय संविधान के दायरे में ही निर्णय ले सकते हैं।

भारतीय संविधान में पर्सनल लॉ (सामुदायिक कानून) और आम भारतीयों के मौलिक अधिकारों की हदें तय है। एक नागरिक अगर चाहे तो जाति पंचायतों के पर्सनल लॉ  विषयक निर्णयों के विरूध्द कोर्ट की शरण में जा सकता है। जाति पंचायतों के पास केवल अधिकार ही नहीं होते कर्त्तव्य भी होते हैं। दुर्भाग्य से जाति पंचायतें अपने कर्त्तव्य को निभाने के प्रति उतने उत्साहित नहीं जितना अपने अधिकार के तहत जाति सदस्यों को दंडित करने में उत्साहित होते हैं। भारतीय संविधान में प्रेम विवाह और पारम्परिक सामाजिक विवाह दोनों को मान्यता है। अगर प्रेम विवाह पारम्परिक तरीके से नहीं करके कोर्ट में किया जाता है तो स्थिति बदल जाती है। उसको हिन्दू विवाह की जगह आधुनिक विवाह मानना पड़ेगा और फिर उस पर पर्सनल लॉ नहीं लागू होगा। अत: यह समुदायों और जाति पंचायतों, ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी बनती है कि अपने सदस्यों को संस्कारित करें।

झज्जर जिला (हरियाणा) के ढराण गांव में पिछले कई दिनों से गोत्र विवाद चल रहा है। गांव के रिसाल सिंह के पोते रवीन्द्र और पानीपत के सिवाह गांव की शिल्पा की शादी को कादियान गोत्र की बारह खाप पंचायत किसी भी हालत में बैध मानने को तैयार नहीं हैं। ग्रामीणों के मुताबिक शिल्पा का गोत्र कादियान से संबध्द है इसलिए यह शादी ढराणा के कादियान गोत्र की खाप को मंजूर नहीं है। रिसाल सिंह का गोत्र गहलोत है, कादियान नहीं। ढ़राणा गांव में दो गोत्र के लोग रहते हैं। कादियान गोत्र के लोग बहुसंख्यक हैं। शिल्पा ने लाइव इंडिया टीवी में 23 जुलाई को साढ़े तीन बजे के प्रोग्राम में बतलाया कि रवीन्द्र को उसकी बुआ ने बचपन में ही गोद ले लिया था अत: रवीन्द्र तो तकनीकी रूप से ढराणा गांव का निवासी भी नहीं है। परन्तु उसके पिता का परिवार ढ़राणा गांव में ही रहते हैं। कादियान गोत्र का बारह खाप उसके ससुराल वालों को बेवजह परेशान कर रहा है। हिंसक संघर्ष में तीन दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। मंगलवार शाम (21 जुलाई 09) को जातीय पंचायत के फैसले के आगे झुकते हुए रिसाल सिंह गहलोत का परिवार गांव छोड़कर चला गया और अपना मकान, सामान और पशुओं के अलावे अन्य संपत्ति रिश्तेदारों के हवाले कर गए। इसी बीच शिल्पा ने राष्ट्रीय महिला आयोग की हरियाणा सदस्य यास्मीन अबरार से मुलाकात कर मामले की जानकारी दी। अबरार ने कहा कि कादियान खाप पंचायत का फैसला पूर्ण रूप से गैरकानूनी है। दूसरी ओर रिसाल सिंह के परिवार के गांव छोड़ने के बाद कादियान खाप का धारना समाप्त कर दिया गया है। शादी 24 अप्रैल 2009 को हुई थी। 18 जून को जब रवीन्द्र अपनी पत्नी के साथ ढ़राणा गांव पहुंचा तो कादियान खाप उबल पड़ा और या तो बहु छोड़ना या गांव छोड़ने का फैसला सुनाया। गहलोत खाप बीच का रास्ता निकालने में जुटा रहा।

शिल्पा का गोत्र कादियान है। कादियान खाप का कहना है कि शिल्पा तो कादियान गोत्र की बेटी है, अगर वह रिश्ता तोड़ती है तो कादियान गोत्र के लोग उसका कन्यादान करेंगे। दूसरी ओर गहलोत खाप ने बीच का रास्ता निकाला है। गहलोत खाप ने रविन्द्र और शिल्पा को ताउम्र गांव से बाहर रहने और एक साल के लिए रविन्द्र के पिता रोहताश को गांव से बाहर चले जाने का फैसला सुनाया है। रोहताश तीन भाई है। नसीब, वेद प्रकाश तथा रोहताश तीनों रिसाल सिंह के बेटे हैं। यानी रिसाल सिंह और उनके दो अन्य बेटों का परिवार गांव में रह सकता है। कादियान खाप को यह मंजूर नहीं है। कादियान खाप की बैठक दूबलधन गांव की पंचायत में हुई। दूबलधन गांव में कादियान गोत्र बहुसंख्यक है। कादियान खाप के फैसले को तामिल कराने के लिए दूबलधन गांव के कादियान दल - बल के साथ ढराणा गांव रवाना हुए।

 

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