मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा

सत्य के प्रयोग

चौथा भाग

भले-बुरे का मिश्रण

 

टॉल्सटॉय आश्रम मे मि. केलनबैक ने मेरे सामने एक प्रश्न खड़ा किया । उनके उठाने से पहले मैने उस प्रश्न पर विचार नही किया था ।

आश्रम के कुछ लड़के ऊधमी और दुष्ट स्वभाव के थे । कुछ आवारा थे । उन्ही के साथ मेरे तीन लड़के थे । उस समय पले हुए दूसरे भी बालक थे । लेकिन मि. केलनबैक का ध्यान तो इस ओर ही था कि वे आवारा युवक औऱ मेरे लड़के एकसाथ कैसे रह सकते थे । एक दिन वे बोल उठे, 'आपका यह तरीका मुझे जरा भी नही जँचता । इन लड़को के साथ आप अपने लड़को को रखे , तो उसका एक ही परिणाम आ सकाता है । उन्हें इन आवारा लड़को की छूत लगेगी । इससे वे बिगड़ेगे नही तो और क्या होगा? '

मुझे इस समय तो याद नही है कि क्षणभर सोच मे पडा था या नही , पर अपना जवाब मुझे याद है । मैने कहा था, 'अपने लड़को और इन आवारा लड़को के बीच मै भेद कैसे कर सकता हूँ ? इस समय तो मै दोनो के लिए समान रूप से जिम्मेदार हूँ । ये नौजवान मेरे बुलाये यहाँ आये है । यदि मै इन्हें पैसे दे दूँ, तो आज ही ये जोहानिस्बर्ग जाकर वहाँ पहले की तरह फिर रहने लग जायेगे । यदि ये और इनके माता पिता यह मानते हो कि यहाँ आकर इन्होंने मुझ पर महेरबानी की है , तो इसमे आश्चर्य नही । यहाँ आने से इन्हें कष्ट उठाना पड़ रहा है , यह तो आप और मै दोनो देख रहे है । पर मेरा धर्म स्पष्ट है । मुझे इन्हे यहीं रखना चाहिये । अतएव मेरे लड़के भी इनके साथ रहेंगे । इसके सिवा, क्या मै आज से अपने लड़को को यह भेदभाव सिखाऊँ कि वे दूसरे कुछ लड़को की अपेक्षा ऊँचे है ? उनके दिमाग मे इस प्रकार के विचार को ठूँसना ही उन्हें गलते रास्ते ले जाने जैसा है । आज की स्थिति मे रहने से वे गढ़े जायेंगे, अपने आप सारासार की परीक्षा करने लगेंगे । हम यह क्यो न माने कि यदि मेरे लड़कों मे सचमुच कोई गुण है , तो उल्टे उन्हीं की छूत उनके साथियो को लगेगी ? सो कुछ भी हो, पर मुझे तो उन्हें यहीं रखना होगा । और यदि ऐसा करने मे कोई खतरा भी हो , तो उसे उठाना होगा । '

मि. केलनबैक ने सिर हिलाया ।

यह नही कहा जा सकता कि इस प्रयोग का परिणाम बुरा निकला । मै नही मानता कि उससे मेरे लड़को को कोई नुकसान हुआ । उल्टे , मै यह देख सका कि उन्हें लाभ हुआ । उनमे बड़प्पन का कोई अंश रहा हो, तो वह पूरी तरह निकल गया । वे सबके साथ घुलना-मिलना सीखे । उनकी कसौटी हुई ।

इस और ऐसे दूसरे अनुभवो पर से मेरा यह विचार बना है कि माता-पिता की उचित देखरेख हो , तो भले और बुरे लड़को के साथ रहने और पढने से भलो की कोई हानि नही होती । ऐसा कोई नियम तो है ही नही कि अपने लड़को को तिजोरी मे बन्द रखने से वे शुद्ध रहते है और बाहर निकलने से भ्रष्ट हो जाते है । हाँ, यह सच है कि जहाँ अनेक प्रकार के बालक और बालिकाये एकसाथ रहती और पढती है , वहाँ माता-पिता की और शिक्षको की कसौटी होती है, उन्हें सावधान रहना पड़ता है ।

 

 

 

 

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