शिशुनाग 412 ई. पू.गद्दी पर बेठ । महावंश के अनुसार वह लिच्छवि राजा के वेश्या पत्नीई से उत्पन्ने पुत्र था । पुराणों के अनुसार वह क्षत्रिय था । इसने सर्वप्रथम मगध के प्रबल प्रतिद्वन्दी राज्य अवन्ति को मिलाया । मगध की सीमा पश्चिमम मालवा तक फैल गई और वत्स को मगध में मिला दिया । वत्स और अवन्ति के मगध में विलय से, पाटलिपुत्र को पश्चिमी देशों से, व्यापारिक मार्ग के लिए रास्ता खुल गया ।
शिशुनाग ने मगध से बंगाल की सीमा से मालवा तक विशाल भू-भाग पर अधिकार कर लिया ।
शिशुनाग एक शक्तिधशाली शासक था जिसने गिरिव्रज के अलावा वैशाली नगर को भी अपनी राजधानी बनाया । 394 ई. पू. में इसकी मृत्यु हो गई ।
कालाशोक (394 ई. पू. - 366 ई. पू.)
यह शिशुनाग का पुत्र था जो शिशुनाग के 394 ई. पू. मृत्यु के बाद मगध का शासक बना । महावंश में इसे कालाशोक तथा पुराणों में काकवर्ण कहा गया है । कालाशोक ने अपनी राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानान्तरित कर दिया था । इसने 28 वर्षों तक शासन किया । कालाशोक के शासनकाल में ही बौद्ध धर्म की द्वितीय संगीति का आयोजन हुआ ।
बाणभट्ट रचित हर्षचरित के अनुसार काकवर्ण को राजधानी पाटलिपुत्र में घूमते समय महापद्यनन्द नामक व्यक्ति ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी । 366 ई. पू. कालाशोक की मृत्यु हो गई ।
महाबोधिवंश के अनुसार कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने मगध पर २२ वर्षों तक शासन किया ।
344 ई. पू. में शिशुनाग वंश का अन्त हो गया और नन्द वंश का उदय हुआ ।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217