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हिन्दी के कवि

अमीर खुसरो

(1253-1325 ई)

अमीर खुसरो का जन्म जिला एटा में हुआ। इनका जन्म का नाम अबुल हसन था। इनके गुरू हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया थे जिनकी इन पर अटूट कृपा थी। ये भी उन पर बडी श्रध्दा रखते थे। खुसरो संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की तथा कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे। ये 12 वर्ष की आयु से शेर और रुबाइयाँ लिखने लगे थे, जिनकी भाषा 'हिंदवी है। कहते हैं, इन्होंने 99 पुस्तकें लिखीं। हिंदी में इनकी पहेलियाँ और मुकरियाँ बहुत लोकप्रिय हुईं।
'खालिक बारी नाम से एक पद्यबध्द शब्दकोश भी इन्होंने बनाया था। खुसरो ने 'ढकोसले भी लिखे जिनके पीछे यह किंवदंती है - एक बार प्यास लगने पर गाँव के कुएँ पर लडकियों से इन्होंने पानी माँगा तो उन्होंने कहा कि आप तो खुसरो हैं, जो पहेलियाँ और मुकरिया लिखते हैं। पहले हमें खीर, चरखा, कुत्ता और ढोल पर कुछ सुनाइए। खुसरो ने तुरंत कहा :

'खीर पकाई जतन से औ चरखा दिया चलाय।
आया कुत्ता ले गया, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिला!

(अमीर खुसरो खडी बोली के प्रथम कवि, बुहभाषाविद, सूफी साधक, हिंदू मुस्लिम एकता के अग्रदूत, भारतीय संगीत के उन्नायक एवं राष्ट्रभक्त थे।)

बूझ पहेलियाँ

एक नार वह दाँत दँतीली। दुबली-पतली छैल छबीली।
जब वा तिरियहिं लागै भूख। सूखे हरे चबावै रूख।
जो बताया वाही बलिहारी। खुसरो कहे बरी को आरी।
- आरी

खडा भी लोटा पडा पडा भी लोटा। है बैठा और कहे हैं लोटा।
खुसरो कहे समझ का टोटा॥
- लोटा

बीसों का सिर काट लिया। ना मसारा ना खून किया॥
सावन भादो बहुत चलत है, माघ पूस में थोरी।
अमीर खुसरो यों कहे, तू बूझ पहेली मोरी॥
- मोरी

घूस घुमेला लहँगा पहिने, एक पाँव से रहे खडी।
आठ हाथ हैं उस नारी के, सूरत उसकी लगे परी।
सब कोई उसकी चाह करे, मुसलमान, हिंदू छतरी।
खुसरो ने यही कही पहेली, दिल में अपने सोच जरी।
- छतरी

आदि कटे से सबको पारे। मध्य कटे से सबको मारे।
अन्त कटे से सबको मीठा। खुसरो वाको ऑंखो दीठा॥
- काजल

बाला था जब सबको भाया। बढा हुआ कछु काम न आया।
खुसरो कह दिया नाँव। अर्थ करो नहिं छोडो गाँव॥।
- दीया

एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे॥
- आकाश

एक नार ने अचरज किया। साँप मार पिंजरे में दिया।
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खा। सूखै ताल साँप मरि जाए॥
- दीये की बत्ती

एक नारि के हैं दो बालक, दोनों एकहिं रंग।
एक फिरे एक ठाढ रहे, फिर भी दोनों संग॥
- चक्की

खेत में उपजे सब कोई खाय।
घर में होवे घर खा जाय॥
- फूट


मुकरियाँ

रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥

नंगे पाँव फिरन नहीं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥

वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥

जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे। ।
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥

बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥
व्याकुल हुई मैं हक्की-बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥

अति सुरंग है रंग रंगीलो। है गुणवंत बहुत चटकीलो।
राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥

अर्ध निशा वह आयो भौन। सुंदरता बरने कवि कौन।
निरखत ही मन भयो आनंद। क्यों सखि साजन?ना सखि चंद॥

शोभा सदा बढावन हारा। ऑंखिन से छिन होत न न्यारा।
आठ पहर मेरो मनरंजन। क्यों सखि साजन?ना सखि अंजन॥

जीवन सब जग जासों कहै। वा बिनु नेक न धीरज रहै।
हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन?ना सखि नीर॥

बिन आए सबहीं सुख भूले। आए ते अंँग-ऍंग सब फूले।
सीरी भई लगावत छाती क्यों सखि साजन?ना सखि पाती॥

 

दो सखुना

रोटी जली क्यों? घोडा अडा क्यों? पान सडा क्यों ?
- फेरा न था

अनार क्यों न चक्खा? वजीर क्यों न रक्खा ?
-दाना न था

पंडित प्यासा क्यों? गधा उदास क्यों ?
- लोटा न था

 

दोहा

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस॥

 

 

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