(जन्म 1936ई.)
बालस्वरूप राही का जन्म तिमारपुर दिल्ली में हुआ। हिन्दी में एम.ए. कर पत्रकारिता से जुडे और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सह-सम्पादक बने। सम्प्रति भारतीय ज्ञानपीठ से सम्बध्द है। 'राही हिन्दी के चर्चित गीतकार हैं। इनकी काव्य चेतना व्यापक है, जिसमें व्यक्ति और राष्ट्र दोनों समाहित हैं। इनके गीत-संग्रह हैं : 'मेरा रूप तुम्हारा दर्पण,' दादी अम्मां मुझे बताओ तथा 'जो नितांत मेरी है आदि। भाषा बोलचाल की हिन्दी है।
अधूरी समाप्तियां
सब समाप्त हो जाने के पश्चात भी
कुछ ऐसा है
जो कि अनहुआ रह जाता है
चलते-चलते राह कहीं चुक जाती है
लेकिन लक्ष्य नहीं मिलता
चाहे रखो उसे जल में या धूप में
किन्तु फूल कोई दो बार नहीं खिलता
खिले फूल के झर जाने के बाद भी
शापग्रस्त सौरभ उसका
किसी डाल के आसपास मंडराता है
अच्छा, मैंने मान लिया
अब तुमसे कुछ संबंध नहीं
पर विवेक का लग पाता मन पर सदैव प्रतिबंध नहीं
अक्सर ऐसा होता है
सब जंजीरें खुल जाने के बाद भी
कैदी अपने को कैदी ही पाता है
मृत्यु किसी जीवन का अंतिम अंत नहीं
साथ देह के प्राण नहीं मर पाते हैं
दृष्टि रहे न रहे कुछ फर्क नही पडता
चक्षुहीन को भी तो सपने आते हैं
सभी राख हो जाने के पश्चात भी
कोई अंगारा ऐसा बच जाता है
जो भीतर भीतर रह-रह धुंधुआता है
सब समाप्त हो जाने के पश्चात भी....
*यात्रा
इन पथरीले वीरान पहाडों पर
जिंदगी थक गई है चढते-चढते।
क्या इस यात्रा का कोई अंत नहीं
हम गिर जाएंगे थक कर यहीं कहीं
कोई सहयात्री साथ न आएगा
क्या जीवन-भर कुछ हाथ न आएगा
क्या कभी किसी मंजिल तक पहुंचेंगे
या बिछ जाएंगे पथ गढते-गढते।
धुंधुआती हुई दिशाएं : अंगारे
ये खण्डित दर्पण : टूटे इकतारे
कहते-इस पथ में हम ही नहीं नए
हमसे आगे भी कितने लोग गए
पगचिह्न यहां ये किसके अंकित हैं
हम हार गए इनको पढते-पढते।
हमसे किसने कह दिया कि चोटी पर
है एक रोशनी का रंगीन नगर
क्या सच निकलेगा, उसका यही कथन
या निगल जाएगी हमको सिर्फ थकन
देखें सम्मुख घाटी है या कि शिखर
आ गए मोड पर हम बढते-बढते।
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Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217