(18वीं शताब्दी)
गिरिधर (मूलनाम हरिदास) भाट अथवा ब्रह्म भट्ट थे। ऐसा अनुमान है कि ये पंजाब के रहने वाले थे, किन्तु बाद में इलाहाबाद के आसपास आकर रहने लगे। इन्होंने कुंडलियों में ही समस्त काव्य रचा। कहते हैं जिन कुंडलियों में 'सांई की छाप है वे इनकी पत्नी द्वारा रची गई हैं। गिरधर कविराय की कुंडलियां अवधी और पंजाबी भाषा में हैं। ये अधिकतर नीति विषयक हैं। गिरिधर कविराय ग्रंथावली में इनकी पांच सौ से अधिक कुडलियां संकलित हैं।
कुंडलियां
सोना लादन पिय गए, सूना करि गए देस।
सोना मिले न पिय मिले, रूपा ह्वै गए केस॥
रूपा ह्वै गए केस, रोर रंग रूप गंवावा।
सेजन को बिसराम, पिया बिन कबहुं न पावा॥
कह 'गिरिधर कविराय लोन बिन सबै अलोना।
बहुरि पिया घर आव, कहा करिहौ लै सोना॥
दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥
ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह 'गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥
गुन के गाहक सहस नर, बिनु गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, सबद सुनै सब कोय॥
सबद सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह 'गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मनके।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
सांई अवसर के परे, को न सहै दु:ख द्वंद।
जाय बिकाने डोम घर, वै राजा हरिचंद॥
वै राजा हरिचंद, करैं मरघट रखवारी।
धरे तपस्वी वेष, फिरै अर्जुन बलधारी॥
कह 'गिरिधर कविराय, तपै वह भीम रसोई।
को न करै घटि काम, परे अवसर के साई॥
बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हंसाय॥
जग में होत हंसाय, चित्त चित्त में चैन न पावै।
खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै॥
कह 'गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय मांहि, कियो जो बिना बिचारे॥
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह 'गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥
सांई अपने चित्त की, भूलि न कहिये कोइ।
तब लगि मन में राखिये, जब लगि कारज होइ॥
जब लगि कारज होइ, भूलि कबं नहिं कहिये।
दुरजन हंसै न कोय, आप सियरे ह्वै रहिये।
कह 'गिरिधर कविराय बात चतुरन के र्ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिये नहिं सांई॥
पानी बाढो नाव में, घर में बाढो दाम।
दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
परमारथ के काज, सीस आगै धरि दीजै॥
कह 'गिरिधर कविराय, बडेन की याही बानी।
चलिये चाल सुचाल, राखिये अपनो पानी॥
चिंता ज्वाल सरीर की, दाह लगे न बुझाय।
प्रकट धुआं नहिं देखिए, उर अंतर धुंधुवाय॥
उर अंतर धुंधुवाय, जरै जस कांच की भट्ठी।
रक्त मांस जरि जाय, रहै पांजरि की ठट्ठी॥
कह 'गिरिधर कविराय, सुनो रे मेरे मिंता।
ते नर कैसे जियै, जाहि व्यापी है चिंता॥
सांई बैर न कीजिए, गुरु पंडित कवि यार।
बेटा बनिता पंवरिया, यज्ञ करावन हार॥
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई।
विप्र परोसी वैद्य, आप को तपै रसोई॥
कह 'गिरिधर कविराय युगन ते यहि चलि आई।
इन तेरह सों तरह दिये बनि आवै सांई॥
सांई सब संसार में, मतलब को व्यवहार।
जब लग पैसा गांठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संगही संग डोलैं।
पैसा रहा न पास, यार मुख से नहिं बोलैं॥
कह 'गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई सांई॥
रहिये लटपट काटि दिन, बरु घामें मां सोय।
छांह न वाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा दैहै।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहै॥
कह 'गिरिधर कविराय छांह मोटे की गहिये।
पाता सब झरि जाय तऊ छाया में रहिये॥
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217