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हिन्दी के कवि

गुरु तेग बहादुर

(1622-1675 ई.)

तेग बहादुर का जन्म अमृतसर में हुआ। ये गुरु हरगोविन्द के पाँचवें पुत्र थे किन्तु आठवें गुरु इनके पोते हरकृष्ण राय की अकाल मृत्यु के कारण जनमत से ये नौवें गुरु बनाए गए। इन्होंने आनंदपुर साहब का निर्माण कराया तथा वहीं रहने लगे। औरंगजेब काश्मीरी ब्राह्मणों को मुसलमान बनाना चाहता  था। इस अत्याचार के विरूध्द उन्होने गुरुजी की सहायता माँगी। गुरु ने कहा उससे कहो पहले मुझे मुसलमान बनाए। औरगंजेब ने सुना तो उन्हें पकडवा बुलाया। बहुत यातनाएँ दी, किन्तु वे धर्म बदलने को राजी नहीं हुए। अंत में इन्हें कत्ल करा दिया। मृत्यु के समीप भी वे अत्यंत शांत थे। इनकी बहुत सी रचनाएँ ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। इन्होंने शुध्द हिन्दी में सरल, भावयुक्त पद और साखी रचीं।

पद


काहे रे बन खोजन जाई।
सरब-निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई ॥

पुहुप मध्य जिऊँ बासु बसतु है, मुकुर माहिं जैसे छाँईं।
तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही खोजहु भाई ।
बाहरि भीतरि एकै जानहु, इह गुरु गिआनु बताई ।
'जन नानक बिनु आपा चीन्हें, मिटै न भ्रम की काई ।
जो नरु दु्ख मैं दु्खु नहिं मानै॥

सुख सनेहु अरु भैं नहीं जाकै, कंचन माटी मानै।
नहिं निंदिआ नहिं उसतुति जाकै, लोभु मोहु अभिमाना।
हरख सोग ते रहै निआरऊ, नाहिं मान अपमाना॥
आसा मनसा सगल तिआगै, जग तै रहै निरासा।
कामु क्रोधु जिह परसै नाहिन, तिह घट ब्रह्मनिवासा॥
गुरु किरपा जिह नर कउ कीनी, तिह इह जुगत पछानी।
'नानक लीन भइओ गोविंद सिउ, जिउँ पानी संगि पानी॥
साधो, मन का भान तिआगो।

काम क्रोध संगति दुरजन की, ताते अहनिसि भागो।
सुखु दुखु दोनो सम करि जानै औरु मानु अपमाना॥
हरख-सोग ते रहै अतीता, तिनि जगि तत्त पिछाना॥
उसतुति निंदा दोऊ त्यागै, खोजै पदु निरबाना।
'जन नानक इहु खेलु कठन है, किन गुर मुखि जाना॥

साखी


सुख दुख जिह परसै नहीं, लोभ मोह अभिमान।
कहु नानक सुन रे मना, सो मूरत भगवान॥

उसतुति निंदा नाहिं जिहि, कंचन लोह समान।
कहु नानक सुन रे मना, मुकत ताहि तैं जानि॥

हरख-सोग जाके नहीं, बैरी मीत समान।
कहु नानक सुन रे मना, मुकत ताहिं तैं जानि॥

भै का कउ देत नहिं, नहिं भै मानत आनि।
कहु नानक सुन रे मना, गिआनी ताहि बखानि॥

मन माइआ में रमि रहिओ, निकसत नाहिन मीत।
नानक मूरति चित्र जिउ, छाडत नाहिन भीत॥

राम गइओ रावन गइओ, जाको बहु परिवार।
कहु नानक थिरु कुछ नहीं, सुपने जिऊँ संसार॥

चिंता ताकि कीजिए, जो अनहोनी होई।
इह मारगु संसार को, नानक थिरु नहिं कोइ।

 

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