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हिन्दी के कवि

नेवाज

(जन्म 1682 ई., मृत्युकाल अज्ञात)

नेवाज के विषय में अधिक कुछ ज्ञान नहीं है। कहते हैं ये जाति के ब्राह्मण थे तथा बुंदेला राजा छत्रसाल के आश्रित थे। इनके दो ग्रंथ प्राप्त हैं, 'शकुंतला-नाटक तथा 'छत्रसाल-बिरुदावली। इनके फुटकर शृंगार-परक छंद भी मिलते हैं। कविता की दृष्टि से यही अधिक महत्वपूर्ण हैं। ये बडे रसिक थे। रचआनों में प्रेम की सरल भावाभिव्यक्ति के कारण 'नेवाज का नाम गौरव से लिया जाता है।

पद

आगे तौ कींन्हीं लगालगी लोयन, कैसे छिपै अजँ जो छिपावति।
तू अनुराग को सोध कियो, ब्रज की बनिता सब यौं ठहरावति॥

कौन सँकोच रह्यो है 'नेवाज, जो तू तरसै औ उन्हैं तरसावति।
बावरी जो पै कलंक लग्यो, तौ निसंक ह्वै काहे न अंक लगावति॥

सुनती हौ कहा, भजि जाहु घरै, बिंधि जाहुगी मैन के बानन में।
यह बंसी 'नेवाज भरी विष सों, विष सो बगरावति प्रानन में॥

अबहीं सुधि भूलिहौ मेरी भटू, भभरौ जनि मीठी सी तानन में।
कुलकानि जो आपनी राखी चहौ, दै रहौ ऍंगुरी दोऊ कानन में॥

देखि हमैं सब आपुस मैं, जो कछू मन भावै सोई कहती हैं।
ऐ घरहाई लोगाई सबै, निसि द्यौस 'नेवाज हमें दहती हैं॥

बातैं चबाव भरी सुनि कै, रिसि आवति पै, चुप ह्वै रहती हैं।
कान्ह पियारे तिहारे लिए, सिगरे ब्रज को हँसिबो सहती हैं॥

 

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