हिन्दी के कवि
राजकमल चौधरी
(1929-1967 ई.)
राजकमल चौधरी का जन्म उत्तरी बिहार के महिसी गांव में हुआ। शिक्षा के बंधन में बंधकर ये लगातार यायावरी तथा साहित्य सृजन करते रहे। काव्य प्रतिभा बचपन से थी। ये पटना में अल्पायु में ही दिवंगत हुए। इन्होंने प्रचुर गद्य और पद्य रचना की है। उपन्यास (मछली मरी हुई, देहगाथा आदि), कहानी संग्रह (मछली जाल, 'सामुद्रिक और अन्य कहानियां) के अतिरिक्त इनकी मुख्य काव्यकृतियां हैं : 'कंकावती, 'मुक्ति प्रसंग, 'इस अकाल वेला में तथा 'स्वर-गंधा (मैथिली)। राजकमल वामपंथी विचारधारा के रचनाकार थे।
तुम मुझे क्षमा करो
बहुत अंधी थीं मेरी प्रार्थनाएं।
मुस्कुराहटें मेरी विवश
किसी भी चंद्रमा के चतुर्दिक
उगा नहीं पाई आकाश-गंगा
लगातार फूल-
चंद्रमुखी!
बहुत अंधी थीं मेरी प्रार्थनाएं।
मुस्कुराहटें मेरी विकल
नहीं कर पाई तय वे पद-चिन्ह।
मेरे प्रति तुम्हारी राग-अस्थिरता,
अपराध-आकांक्षा ने
विस्मय ने-जिन्हें,
काल के सीमाहीन मरुथल पर
सजाया था अकारण, उस दिन
अनाधार।
मेरी प्रार्थनाएं तुम्हारे लिए
नहीं बन सकीं
गान,
मुझे क्षमा करो।
मैं एक सच्चाई थी
तुमने कभी मुझको अपने पास नहीं बुलाया।
उम्र की मखमली कालीनों पर हम साथ नहीं चले
हमने पांवों से बहारों के कभी फूल नहीं कुचले
तुम रेगिस्तानों में भटकते रहे
उगाते रहे फफोले
मैं नदी डरती रही हर रात!
तुमने कभी मुझे कोई गीत गाने को नहीं कहा।
वक्त के सरगम पर हमने नए राग नहीं बोए-काटे
गीत से जीवन के सूखे हुए सरोवर नहीं पाटे
हमारी आवाज से चमन तो क्या
कांपी नहीं वह डाल भी, जिस पर बैठे थे कभी!
तुमने खामोशी को इर्द-गिर्द लपेट लिया
मैं लिपटी हुई सोई रही।
तुमने कभी मुझको अपने पास नहीं बुलाया
क्योंकि, मैं हरदम तुम्हारे साथ थी,
तुमने कभी मुझे कोई गीत गाने को नहीं कहा
क्योंकि हमारी जिंदगी से बेहतर कोई संगीत न था,
(क्या है, जो हम यह संगीत कभी सुन न सके!)
मैं तुम्हारा कोई सपना नहीं थी, सच्चाई थी!
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217