(जन्म 1924 ई.)
ठाकुर प्रसाद सिंह का जन्म वाराणासी में हुआ। इन्होंने हिन्दी तथा प्राचीन भारतीय इतिहास व पुरातत्व में उच्च शिक्षा प्राप्त की। कई वर्षों तक अध्यापन और पत्रकारिता के बाद उत्तरप्रदेश के सूचना विभाग में चले गए। वहां हिन्दी संस्थान के निदेशक रहे। कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। नाटक तथा उपन्यास भी लिखे। कविता के क्षेत्र में 'महामानव (प्रबंध-काव्य) एवं 'वंशी और मादल (गीत-संग्रह) विशेष चर्चित रहे। नवगीत विधा के कवियों में इनका प्रमुख स्थान है।
गांव के किनारे
गांव के किनारे है बरगद का पेड
बरगद की झूलती जटाएं
कैसी रे झूलती जटाएं
झूलें बस भूमि तक न आएं।
ऐसे ही लडके इस गांव के
कहने को पास चले आएं
बांहें फैलाएं
झुकते आएं
मिलने के पहले पर
लौट-लौट जाएं
बरगद की झूलती जटाएं।
तुमने क्या नहीं देखा
तुमने क्या नहीं देखा
आग-सी झलकती में
तुमने क्या नहीं देखा
बाढ-सी उमडती में
नहीं, मुझे पहचाना
धूल भरी आंधी में
जानोगे तब जब
कुहरे-सी घिर जाऊंगी
मैं क्या हूँ मौसम
जो बार-बार आऊंगी!
पहली बूंद
यह बादल की पहली बूंद कि यह वर्षा का पहला चुम्बन
स्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर कांप उठा मेरा मन।
बरगद की गंभीर बांहों से बादल आ आंगन पर छाए
झांक रहा जिनसे मटमैला थका चांद पत्तियां हटाए
नीची-ऊंची खपरैलों के पार शांत वन की गलियों में
रह-रह कर लाचार पपीहा थकन घोल देता है उन्मन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
पिछवारे की बंसवारी में फंसा हवा का हलका अंचल
खिंच-खिंच पडते बांस कि रह-रह बज-बज उठते पत्ते चंचल
चरनी पर बांधे बैलों की तडपन बन घण्टियां बज रहीं
यह ऊमस से भरी रात यह हांफ रहा छोटा-सा आंगन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुंधला कुहरा,
यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धंस गया थकन में मन की, गहरा
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर
एक रूपहली बूंद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217