मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-10

पेज-105

एकाएक द्वार खुलते और होरी को आते देख कर वह भय से काँपती हुई उठी और होरी के पैरों पर गिर कर रोती हुई बोली - दादा, अब तुम्हारे सिवाय मुझे दूसरा ठौर नहीं है, चाहे मारो चाहे काटो, लेकिन अपने द्वार से दुरदुराओ मत।

होरी ने झुक कर उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए प्यार-भरे स्वर में कहा - डर मत बेटी, डर मत। तेरा घर है, तेरा द्वार है, तेरे हम हैं। आराम से रह। जैसी तू भोला की बेटी है, वैसी ही मेरी बेटी है। जब तक हम जीते हैं, किसी बात की चिंता मत कर। हमारे रहते, कोई तुझे तिरछी आँखों से न देख सकेगा। भोज-भात जो लगेगा, वह हम सब दे लेंगे, तू खातिर जमा रख।

झुनिया, सांत्वना पा कर और भी होरी के पैरों से चिमट गई और बोली - दादा, अब तुम्हीं मेरे बाप हो, और अम्माँ, तुम्हीं मेरी माँ हो। मैं अनाथ हूँ। मुझे सरन दो, नहीं मेरे काका और भाई मुझे कच्चा ही खा जाएँगे।

धनिया अपने करुणा के आवेश को अब न रोक सकी। बोली - तू चल घर में बैठ, मैं देख लूँगी काका और भैया को। संसार में उन्हीं का राज नहीं है। बहुत करेंगे, अपने गहने ले लेंगे। फेंक देना उतार कर।

अभी जरा देर पहले धनिया ने क्रोध के आवेश में झुनिया को कुलटा और कलंकिनी और कलमुँही, न जाने क्या-क्या कह डाला था। झाड़ू मार कर घर से निकालने जा रही थी। अब जो झुनिया ने स्नेह, क्षमा और आश्वासन से भरे यह वाक्य सुने, तो होरी के पाँव छोड़ कर धनिया के पाँव से लिपट गई और वही साध्वी, जिसने होरी के सिवा किसी पुरुष को आँख भर कर देखा भी न था, इस पापिष्ठा को गले लगाए, उसके आँसू पोंछ रही थी और उसके त्रस्त हृदय को कोमल शब्दों से शांत कर रही थी, जैसे कोई चिड़िया अपने बच्चे को परों में छिपाए बैठी हो।

होरी ने धनिया को संकेत किया कि इसे कुछ खिला-पिला दे और झुनिया से पूछा - क्यों बेटी, तुझे कुछ मालूम है, गोबर किधर गया।

झुनिया ने सिसकते हुए कहा - मुझसे तो कुछ नहीं कहा। मेरे कारन तुम्हारे ऊपर...यह कहते-कहते उसकी आवाज आँसुओं में डूब गई।

होरी अपने व्याकुलता न छिपा सका।

'जब तूने आज उसे देखा, तो कुछ दु:खी था?'

'बातें तो हँस-हँस कर रहे थे। मन का हाल भगवान जाने।'

'तेरा मन क्या कहता है, है गाँव में ही कि कहीं बाहर चला गया?'

'मुझे तो शंका होती है, कहीं बाहर चले गए हैं।'

'यही मेरा मन भी कहता है, कैसी नादानी की। हम उसके दुसमन थोड़े ही थे। जब भली या बुरी एक बात हो गई, तो वह निभानी पड़ती है। इस तरह भाग कर तो उसने हमारी जान आफत में डाल दी।'

धनिया ने झुनिया का हाथ पकड़ कर अंदर ले जाते हुए कहा - कायर कहीं का! जिसकी बाँह पकड़ी, उसका निबाह करना चाहिए कि मुँह में कालिख लगा कर भाग जाना चाहिए! अब जो आए, तो घर में पैठने न दूँ।

होरी वहीं पुआल पर लेटा। गोबर कहाँ गया? यह प्रश्न उसके हृदयाकाश में किसी पक्षी की भाँति मँडराने लगा।

 

 

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