मेहता गंभीर भाव से बोले - आपका खयाल बिलकुल गलत है मिर्जा जी! मिस मालती हसीन हैं, खुशमिजाज हैं, समझदार हैं, रोशनखयाल हैं और भी उनमें कितनी खूबियाँ हैं, लेकिन मैं अपने जीवन-संगिनी में जो बात देखना चाहता हूँ, वह उनमें नहीं है और न शायद हो सकती है। मेरे जेहन में औरत वफा और त्याग की मूर्ति है, जो अपनी बेजबानी से, अपनी कुर्बानी से, अपने को बिलकुल मिटा कर पति की आत्मा का एक अंश बन जाती है। देह पुरुष की रहती है पर आत्मा स्त्री की होती है। आप कहेंगे, मर्द अपने को क्यों नहीं मिटाता? औरत ही से क्यों इसकी आशा करता है? मर्द में वह सामर्थ्य ही नहीं है। वह अपने को मिटाएगा, तो शून्य हो जायगा। वह किसी खोह में जा बैठेगा और सर्वात्मा में मिल जाने का स्वप्न देखेगा। वह तेज प्रधान जीव है, और अहंकार में यह समझ कर कि वह ज्ञान का पुतला है, सीधा ईश्वर में लीन होने की कल्पना किया करता है। स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं, तो वह कुलटा हो जाती है। पुरुष आकर्षित होता है स्त्री की ओर, जो सर्वांश में स्त्री हो। मालती ने अभी तक मुझे आकर्षित नहीं किया। मैं आपसे किन शब्दों में कहूँ कि स्त्री मेरी नजरों में क्या है। संसार में जो कुछ सुंदर है, उसी की प्रतिमा को मैं स्त्री कहता हूँ, मैं उससे यह आशा रखता हूँ कि मैं उसे मार ही डालूँ तो भी प्रतिहिंसा का भाव उसमें न आए। अगर मैं उसकी आँखों के सामने किसी स्त्री को प्यार करूँ तो भी उसकी ईर्ष्या न जागे। ऐसी नारी पा कर मैं उसके चरणों में गिर पड़ूँगा और उस पर अपने को अर्पण कर दूँगा। मिर्जा ने सिर हिला कर कहा - ऐसी औरत आपको इस दुनिया में तो शायद ही मिले। मेहता ने हाथ मार कर कहा - एक नहीं हजारों, वरना दुनिया वीरान हो जाती। 'ऐसी एक ही मिसाल दीजिए।' 'मिसेज खन्ना को ही ले लीजिए।' 'लेकिन खन्ना!' 'खन्ना अभागे हैं, जो हीरा पा कर काँच का टुकड़ा समझ रहे हैं। सोचिए, कितना त्याग है और उसके साथ ही कितना प्रेम है। खन्ना के रूपासक्त मन में शायद उसके लिए रत्ती-भर भी स्थान नहीं है, लेकिन आज खन्ना पर कोई आगत आ जाय, तो वह अपने को उन पर न्योछावर कर देगी। खन्ना आज अंधे या कोढ़ी हो जायँ, तो भी उसकी वफादारी में फर्क न आएगा। अभी खन्ना उसकी कद्र नहीं कर रहे हैं, मगर आप देखेंगे, एक दिन यही खन्ना उसके चरण धो-धो कर पिएँगे। मैं ऐसी बीबी नहीं चाहता, जिससे मैं आइंस्टीन के सिद्धांत पर बहस कर सकूँ, या जो मेरी रचनाओं के प्रूफ देखा करे। मैं ऐसी औरत चाहता हूँ, जो मेरे जीवन को पवित्र और उज्ज्वल बना दे, अपने प्रेम और त्याग से।' खुर्शेद ने दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए जैसे कोई भूली हुई बात याद करके कहा - आपका खयाल बहुत ठीक है मिस्टर मेहता! ऐसी औरत अगर कहीं मिल जाय, तो मैं भी शादी कर लूँ, लेकिन मुझे उम्मीद नहीं है कि मिले। मेहता ने हँस कर कहा - आप भी तलाश में रहिए, मैं भी तलाश में हूँ। शायद कभी तकदीर जागे। 'मगर मिस मालती आपको छोड़ने वाली नहीं। कहिए लिख दूँ।' 'ऐसी औरतों से मैं केवल मनोरंजन कर सकता हूँ, ब्याह नहीं। ब्याह तो आत्मसमर्पण है।' 'अगर ब्याह आत्मसमर्पण है तो प्रेम क्या है?' 'प्रेम जब आत्मसमर्पण का रूप लेता है, तभी ब्याह है, उसके पहले ऐयाशी है।' मेहता ने कपड़े पहने और विदा हो गए। शाम हो गई थी। मिर्जा ने जा कर देखा, तो गोबर अभी तक पेड़ों को सींच रहा था। मिर्जा ने प्रसन्न हो कर कहा - जाओ, अब तुम्हारी छुट्टी है। कल फिर आओगे? गोबर ने कातर भाव से कहा - मैं कहीं नौकरी करना चाहता हूँ मालिक। 'नौकरी करना है, तो हम तुझे रख लेंगे।' 'कितना मिलेगा हुजूर?' 'जितना तू माँगे।' 'मैं क्या माँगूँ। आप जो चाहे दे दें।' 'हम तुम्हें पंद्रह रुपए देंगे और खूब कस कर काम लेंगे।' गोबर मेहनत से नहीं डरता। उसे रुपए मिलें, तो वह आठों पहर काम करने को तैयार है। पंद्रह रुपए मिलें, तो क्या पूछना। वह तो प्राण भी दे देगा। बोला - मेरे लिए कोठरी मिल जाय, वहीं पड़ा रहूँगा। 'हाँ-हाँ, जगह का इंतजाम मैं कर दूँगा। इसी झोंपड़ी में एक किनारे तुम भी पड़े रहना।' गोबर को जैसे स्वर्ग मिल गया।
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