अभी वह गाँव के बाहर भी न निकला था कि पीछे से दातादीन, पटेश्वरी, शोभा और दस-बीस आदमी और दौड़े आते दिखाई दिए! भोला का लहू सर्द हो गया। अब फोजदारी हुई, बैल भी छिन जाएँगे, मार भी पड़ेगी। वह रूक गया कमर कस कर। मरना ही है तो लड़ कर मरेगा। दातादीन ने समीप आ कर कहा - यह तुमने क्या अनर्थ किया भोला, ऐं! उसके बैल खोल लाए, वह कुछ बोला नहीं, इसी से सेर हो गए। सब लोग अपने-अपने काम में लगे थे, किसी को खबर भी न हुई। होरी ने जरा-सा इशारा कर दिया होता, तो तुम्हारा एक-एक बाल नुच जाता। भला चाहते हो, तो ले चलो बैल, जरा भी भलमंसी नहीं है तुममें। पटेश्वरी बोले - यह उसके सीधेपन का फल है। तुम्हारे रुपए उस पर आते हैं, तो जा कर दीवानी में दावा करो, डिगरी कराओ। बैल खोल लाने का तुम्हें क्या अख्तियार है? अभी फौजदारी में दावा कर दे तो बँधे-बँधे फिरो। भोला ने दब कर कहा - तो लाला साहब, हम कुछ जबरदस्ती थोड़े ही खोल लाए। होरी ने खुद दिए। पटेश्वरी ने भोला से कहा - तुम बैलों को लौटा दो भोला! किसान अपने बैल खुशी से देगा, कि इन्हें हल में जोतेगा। भोला बैलों के सामने खड़ा हो गया - हमारे रुपए दिलवा दो, हमें बैलों को ले कर क्या करना है? 'हम बैल लिए जाते हैं, अपने रुपए के लिए दावा करो और नहीं तो मार कर गिरा दिए जाओगे। रुपए दिए थे नगद तुमने? एक कुलच्छिनी गाय बेचारे के सिर मढ़ दी और अब उसके बैल खोले लिए जाते हो।' भोला बैलों के सामने से न हटा। खड़ा रहा गुमसुम, दृढ़, मानो मर कर ही हटेगा। पटवारी से दलील करके वह कैसे पेश पाता? दातादीन ने एक कदम आगे बढ़ा कर अपने झुकी कमर को सीधा करके ललकारा - तुम सब खड़े ताकते क्या हो, मार के भगा दो इसको। हमारे गाँव से बैल खोल ले जायगा। बंशी बलिष्ठ युवक था। उसने भोला को जोर से धक्का दिया। भोला सँभल न सका, गिर पड़ा। उठना चाहता था कि बंशी ने फिर एक घूँसा दिया। होरी दौड़ता हुआ आ रहा था। भोला ने उसकी ओर दस कदम बढ़ कर पूछा - ईमान से कहना होरी महतो, मैंने बैल जबरदस्ती खोल लिए? दातादीन ने इसका भावार्थ किया - यह कहते हैं कि होरी ने अपने खुशी से बैल मुझे दे दिए। हमीं को उल्लू बनाते हैं! होरी ने सकुचाते हुए कहा - यह मुझसे कहने लगे या तो झुनिया को घर से निकाल दो, या मेरे रुपए दो, नहीं तो मैं बैल खोल ले जाऊँगा। मैंने कहा - मैं बहू को तो न निकालूँगा, न मेरे पास रुपए हैं, अगर तुम्हारा धरम कहे, तो बैल खोल लो। बस, मैंने इनके धरम पर छोड़ दिया और इन्होंने बैल खोल लिए। पटेश्वरी ने मुँह लटका कर कहा - जब तुमने धरम पर छोड़ दिया, तब काहे की जबरदस्ती। उसके धरम ने कहा - लिए जाता है। जाओ भैया, बैल तुम्हारे हैं। दातादीन ने समर्थन किया - हाँ, जब धरम की बात आ गई, तो कोई क्या कहे। सब-के-सब होरी को तिरस्कार की आँखों से देखते परास्त हो कर लौट पड़े और विजयी भोला शान से गर्दन उठाए बैलों को ले चला।
|