मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-16

पेज-152

रायसाहब को खबर मिली कि इलाके में एक वारदात हो गई है और होरी से गाँव के पंचों ने जुरमाना वसूल कर लिया है, तो फोरन नोखेराम को बुला कर जवाब-तलब किया - क्यों उन्हें इसकी इत्तला नहीं दी गई। ऐसे नमकहराम और दगाबाज आदमी के लिए उनके दरबार में जगह नहीं है।

नोखेराम ने इतनी गालियाँ खाईं, तो जरा गर्म हो कर बोले - मैं अकेला थोड़ा ही था। गाँव के और पंच भी तो थे। मैं अकेला क्या कर लेता?

रायसाहब ने उनकी तोंद की तरफ भाले-जैसी नुकीली दृष्टि से देखा - मत बको जी। तुम्हें उसी वक्त कहना चाहिए था, जब तक सरकार को इत्तला न हो जाय, मैं पंचों को जुरमाना न वसूल करने दूँगा। पंचों को मेरे और मेरी रिआया के बीच में दखल देने का हक क्या है? इस डाँड़-बाँध के सिवा इलाके में और कौन-सी आमदनी है? वसूली सरकार के घर गई। बकाया असामियों ने दबा लिया। तब मैं कहाँ जाऊँ? क्या खाऊँ, तुम्हारा सिर। यह लाखों रुपए का खर्च कहाँ से आए? खेद है कि दो पुश्तों से कारिंदगीरी करने पर भी मुझे आज तुम्हें यह बात बतलानी पड़ती है। कितने रुपए वसूल हुए थे होरी से?

नोखेराम ने सिटपिटा कर कहा - अस्सी रुपए।

'नकद?'

'नकद उसके पास कहाँ थे हुजूर! कुछ अनाज दिया, बाकी में अपना घर लिख दिया।'

रायसाहब ने स्वार्थ का पक्ष छोड़ कर होरी का पक्ष लिया - अच्छा, तो आपने और बगुलाभगत पंचों ने मिल कर मेरे एक मातबर असामी को तबाह कर दिया। मैं पूछता हूँ, तुम लोगों को क्या हक था कि मेरे इलाके में मुझे इत्तिला दिए बगैर मेरे असामी से जुरमाना वसूल करते? इसी बात पर अगर मैं चाहूँ, तो आपको, उस जालिए पटवारी और उस धूर्त पंडित को सात-सात साल के लिए जेल भिजवा सकता हूँ। आपने समझ लिया कि आप ही इलाके के बादशाह हैं। मैं कहे देता हूँ, आज शाम तक जुरमाने की पूरी रकम मेरे पास पहुँच जाय, वरना बुरा होगा। मैं एक-एक से चक्की पिसवा कर छोडूँगा। जाइए, हाँ, होरी को और उसके लड़के को मेरे पास भेज दीजिएगा।

नोखेराम ने दबी जबान से कहा - उसका लड़का तो गाँव छोड़ कर भाग गया। जिस रात को यह वारदात हुई, उसी रात को भागा।

रायसाहब ने रोष से कहा - झूठ मत बोलो। तुम्हें मालूम है, झूठ से मेरे बदन में आग लग जाती है। मैंने आज तक कभी नहीं सुना कि कोई युवक अपने प्रेमिका को उसके घर से ला कर फिर खुद भाग जाए। अगर उसे भागना ही होता, तो वह उस लड़की को लाता क्यों? तुम लोगों की इसमें भी जरूर कोई शरारत है। तुम गंगा में डूब कर भी अपनी सफाई दो, तो मैं मानने का नहीं। तुम लोगों ने अपने समाज की प्यारी मर्यादा की रक्षा के लिए उसे धमकाया होगा। बेचारा भाग न जाता, तो क्या करता!

 

 

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