'अम्माँ डाँटेंगी।' 'अम्माँ से कौन कहने जायगा?' रूपा ने पेट-भर रोटियाँ खाईं और जूठे मुँह भागी हुई घर चली गई। होरी मन-मारे बैठा था कि पंडित दातादीन ने जा कर पुकारा। होरी की छाती धड़कने लगी। क्या कोई नई विपत्ति आने वाली है? आ कर उनके चरण छुए और कौड़े के सामने उनके लिए माँची रख दी। दातादीन ने बैठते हुए अनुग्रह भाव से कहा - अबकी तो तुम्हारे खेत परती पड़ गए होरी! तुमने गाँव में किसी से कुछ कहा नहीं, नहीं भोला की मजाल थी कि तुम्हारे द्वार से बैल खोल ले जाता। यहीं लहास गिर जाती। मैं तुमसे जनेऊ हाथ में ले कर कहता हूँ होरी, मैंने तुम्हारे ऊपर डाँड़ न लगाया था। धनिया मुझे नाहक बदनाम करती फिरती है। यह सब लाला पटेश्वरी और झिंगुरीसिंह की कारस्तानी है। मैं तो लोगों के कहने से पंचायत में बैठ भर गया था। वह लोग तो और कड़ा दंड लगा रहे थे। मैंने कह-सुन के कम कराया, मगर अब सब जने सिर पर हाथ धरे रो रहे हैं। समझे थे, यहाँ उन्हीं का राज है। यह न जानते थे कि गाँव का राजा कोई और है। तो अब अपने खेतों की बोआई का क्या इंतजाम कर रहे हो? 'होरी ने करुण-कंठ से कहा - क्या बताऊँ महाराज, परती रहेंगे। 'परती रहेंगे? यह तो बड़ा अनर्थ होगा।' 'भगवान की यही इच्छा है, तो अपना क्या बस।' 'मेरे देखते तुम्हारे खेत कैसे परती रहेंगे? कल मैं तुम्हारी बोआई करा दूँगा। अभी खेतों में कुछ तरी है। उपज दस दिन पीछे होगी, इसके सिवा और कोई बात नहीं। हमारा-तुम्हारा आधा साझा रहेगा। इसमें न तुम्हें कोई टोटा है, न मुझे। मैंने आज बैठे-बैठे सोचा, तो चित्त बड़ा दुखी हुआ कि जुते-जुताए खेत परती रहे जाते हैं।' होरी सोच में पड़ गया। चौमासे-भर इन खेतों में खाद डाली, जोता और आज केवल बोआई के लिए आधी फसल देनी पड़ रही है। उस पर एहसान कैसा जता रहे हैं, लेकिन इससे तो अच्छा यही है कि खेत परती पड़ जायँ। और कुछ न मिलेगा, लगान तो निकल ही आएगा। नहीं, अबकी बेबाकी न हुई, तो बेदखली आई धरी है। उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। दातादीन प्रसन्न हो कर बोले - तो चलो, मैं अभी बीज तौल दूँ, जिससे सबेरे का झंझट न रहे। रोटी तो खा ली है न? होरी ने लजाते हुए आज घर में चूल्हा न जलने की कथा कही।
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