मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-18

पेज-176

'तो जिसे चाहो बुला लो, मैंने तो नाग को इसलिए कहा था कि वह कई बार आ चुके हैं।'

'मिस मालती को क्यों न बुला लूँ? फीस भी कम और बच्चों का हाल लेडी डाक्टर जैसा समझेगी, कोई मर्द डाक्टर नहीं समझ सकता।'

गोविंदी ने जल कर कहा - मैं मिस मालती को डाक्टर नहीं समझती।

खन्ना ने भी तेज आँखों से देख कर कहा - तो वह इंग्लैंड घास खोदने गई थी, और हजारों आदमियों को आज जीवनदान दे रही है, यह सब कुछ नहीं है?

'होगा, मुझे उन पर भरोसा नहीं है। वह मरदों के दिल का इलाज कर लें। और किसी की दवा उनके पास नहीं है।'

बस ठन गई। खन्ना गरजने लगे। गोविंदी बरसने लगी। उनके बीच में मालती का नाम आ जाना मानो लड़ाई का अल्टिमेटम था।

खन्ना ने सारे कागजों को जमीन पर फेंक कर कहा - तुम्हारे साथ जिंदगी तलख हो गई।

गोविंदी ने नुकीले स्वर में कहा - तो मालती से ब्याह कर लो न! अभी क्या बिगड़ा है, अगर वहाँ दाल गले।

'तुम मुझे क्या समझती हो?'

'यही कि मालती तुम-जैसों को अपना गुलाम बना कर रखना चाहती है, पति बना कर नहीं।'

'तुम्हारी निगाह में मैं इतना जलील हूँ?'

और उन्होंने इसके विरुद्ध प्रमाण देना शुरू किया। मालती जितना उनका आदर करती है, उतना शायद ही किसी का करती हो। रायसाहब और राजा साहब को मुँह तक नहीं लगाती, लेकिन उनसे एक दिन भी मुलाकात न हो, तो शिकायत करती है?

गोविंदी ने इन प्रमाणों को एक फूँक में उड़ा दिया - इसीलिए कि वह तुम्हें सबसे बड़ा आँखों का अंधा समझती है, दूसरों को इतनी आसानी से बेवकूफ नहीं बना सकती।

खन्ना ने डींग मारी - वह चाहें तो आज मालती से विवाह कर सकते हैं। आज, अभी?

मगर गोविंदी को बिलकुल विश्वास नहीं - तुम सात जन्म नाक रगड़ो, तो भी वह तुमसे विवाह न करेगी। तुम उसके टट्टू हो, तुम्हें घास खिलाएगी, कभी-कभी तुम्हारा मुँह सहलाएगी, तुम्हारे पुट्ठों पर हाथ फेरेगी, लेकिन इसीलिए कि तुम्हारे ऊपर सवारी गाँठे। तुम्हारे जैसे एक हजार बुद्धू उसकी जेब में हैं।

 

 

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