इतने में भूरे इक्का ले कर आ गया। अभी दिन-भर का धावामार कर आया था। खबर मिली, गोबर जा रहा है। वैसे ही एक्का इधर फेर दिया। घोड़े ने आपत्ति की। उसे कई चाबुक लगाए। गोबर ने एक्के पर सामान रखा, एक्का बढ़ा, पहुँचाने वाले गली के मोड़ तक पहुँचाने आए, तब गोबर ने सबको राम-राम किया और एक्के पर बैठ गया। सड़क पर एक्का सरपट दौड़ा जा रहा था। गोबर घर जाने की खुशी में मस्त था। भूरे उसे घर पहुँचाने की खुशी में मस्त था। और घोड़ा था पानीदार। उड़ा चला जा रहा था। बात की बात में स्टेशन आ गया। गोबर ने प्रसन्न हो कर एक रूपया कमर से निकाल कर भूरे की तरफ बढ़ा कर कहा - लो, घर वालों के लिए मिठाई लेते जाना। भूरे ने कृतज्ञता-भरे तिरस्कार से उसकी ओर देखा - तुम मुझे गैर समझते हो भैया! एक दिन जरा एक्के पर बैठ गए तो मैं तुमसे इनाम लूँगा। जहाँ तुम्हारा पसीना गिरे, वहाँ खून गिराने को तैयार हूँ। इतना छोटा दिल नहीं पाया है। और ले भी लूँ तो घरवाली मुझे जीता न छोड़ेगी?
गोबर ने फिर कुछ न कहा, लज्जित हो कर अपना असबाब उतारा और टिकट लेने चल दिया।
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