ठाकुर ठकुराइन को रसिक नेत्रों से देख कर कहते हैं - अब भी तुम्हारे ऊपर वह जोबन है कि कोई जवान देख ले, तो तड़प जाए। और ठकुराइन फूल कर कहती हैं, जभी तो नई नवेली लाए! 'उसे तो लाया हूँ तुम्हारी सेवा करने के लिए। वह तुम्हारी क्या बराबरी करेगी?' छोटी बीबी यह वाक्य सुन लेती है और मुँह फुला कर चली जाती है। दूसरे दृश्य में ठाकुर खाट पर लेटे हैं और छोटी बहू मुँह फेरे हुए जमीन पर बैठी है। ठाकुर बार-बार उसका मुँह अपनी ओर फेरने की विफल चेष्टा करके कहते हैं - मुझसे क्यों रूठी हो मेरी लाड़ली? 'तुम्हारी लाड़ली जहाँ हो, वहाँ जाओ। मैं तो लौंडी हूँ, दूसरों की सेवा-टहल करने के लिए आई हूँ।' तुम मेरी रानी हो। तुम्हारी सेवा-टहल करने के लिए वह बुढ़िया है।' पहली ठकुराइन सुन लेती है और झाड़ू ले कर घर में घुसती हैं और कई झाड़ू उन पर जमाती हैं। ठाकुर साहब जान बचा कर भागते हैं। फिर दूसरी नकल हुई, जिसमें ठाकुर ने दस रुपए का दस्तावेज लिख कर पाँच रुपए दिए, शेष नजराने और तहरीर और दस्तूरी और ब्याज में काट लिए। किसान आ कर ठाकुर के चरण पकड़ कर रोने लगता है। बड़ी मुश्किल से ठाकुर रुपए देने पर राजी होते हैं। जब कागज लिख जाता है और असामी के हाथ में पाँच रुपए रख दिए जाते हैं तो वह चकरा कर पूछता है? 'यह तो पाँच ही हैं मालिक!' 'पाँच नहीं, दस हैं। घर जा कर गिनना।' 'नहीं सरकार, पाँच हैं।' 'एक रूपया नजराने का हुआ कि नहीं?' 'हाँ, सरकार!' 'एक तहरीर का?' 'हाँ, सरकार!' 'एक कागद का?' 'हाँ, सरकार।' 'एक दस्तूरी का?' 'हाँ, सरकार!' 'एक सूद का?' 'हाँ, सरकार!' 'पाँच नगद, दस हुए कि नहीं?' 'हाँ, सरकार! अब यह पाँचों मेरी ओर से रख लीजिए।' 'कैसा पागल है?' 'नहीं सरकार, एक रूपया छोटी ठकुराइन का नजराना है, एक रूपया बड़ी ठकुराइन का। एक रूपया ठकुराइन के पान खाने को, एक बड़ी ठकुराइन के पान खाने को। बाकी बचा एक, वह आपकी करिया-करम के लिए।'
|