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मुंशी प्रेमचंद - गोदान
गोदान
भाग-22
पेज-230
खन्ना ने कृतज्ञता के भाव से कहा - यह आपकी कृपा है। मैंने भी सदैव आपको अपना बड़ा भाई समझा है और अब भी समझता हूँ। कभी आपसे कोई पर्दा नहीं रखा, लेकिन व्यापार एक दूसरा ही क्षेत्र है। यहाँ कोई किसी का दोस्त नहीं, कोई किसी का भाई नहीं। जिस तरह मैं भाई के नाते आपसे यह नहीं कह सकता कि मुझे दूसरों से ज्यादा कमीशन दीजिए, उसी तरह आपको भी मेरे कमीशन में रिआयत के लिए आग्रह न करना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि मैं जितनी रिआयत आपके साथ कर सकता हूँ, उतनी करूँगा। कल आप दफ़्तर के वक्त आएँ और लिखा-पढ़ी कर लें। बस, बिसनेज खत्म। आपने कुछ और सुना। मेहता साहब आजकल मालती पर बे-तरह रीझे हुए हैं। सारी फिलासफी निकल गई। दिन में एक-दो बार जरूर हाजिरी दे आते हैं, और शाम को अक्सर दोनों साथ-साथ सैर करने निकलते हैं। यह तो मेरी ही शान थी कि कभी मालती के द्वार पर सलामी करने न गया। शायद अब उसी की कसर निकाल रही है। कहाँ तो यह हाल था कि जो कुछ हैं, मिस्टर खन्ना हैं। कोई काम होता, तो खन्ना के पास दौड़ी आतीं। जब रूपयों की जरूरत पड़ती, तो खन्ना के नाम पुरजा आती। और कहाँ अब मुझे देख कर मुँह फेर लेती हैं। मैंने खास उन्हीं के लिए फ्रांस से एक घड़ी मँगवाई थी। बड़े शौक से ले कर गया, मगर नहीं ली। अभी कल सेबों की डाली भेजी थी - काश्मीर से मँगवाए थे - वापस कर दी। मुझे तो आश्चर्य होता है कि आदमी कैसे इतनी जल्द बदल जाता है।
रायसाहब मन में तो उसकी बेकद्री पर खुश हुए, पर सहानुभूति दिखा कर बोले - अगर यह भी माने लें कि मेहता से उसका प्रेम हो गया है, तो भी व्यवहार तोड़ने का कोई कारण नहीं है।
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