मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-22

पेज-234

खन्ना ने उपहास किया - हाँ, जब लार्ड विलसन आएँगे तो मेरा पहुँचना जरूरी ही है। इस तरह आप बहुत-से रईसों को फाँस लेंगे। आप लोगों को लटके खूब सूझते हैं। और हमारे रईस हैं भी इस लायक। उन्हें उल्लू बना कर ही मूँड़ा जा सकता है।

'जब धन जरूरत से ज्यादा हो जाता है, तो अपने लिए निकास का मार्ग खोजता है। यों न निकल पाएगा तो जुए में जायगा, घुड़दौड़ में जायगा ईंट-पत्थर में जायगा या ऐयाशी में जायगा।'

ग्यारह का अमल था। खन्ना साहब के दफ़्तर का समय आ गया। मेहता चले गए। रायसाहब भी उठे कि खन्ना ने उनका हाथ पकड़ बैठा लिया - नहीं, आप जरा बैठिए। आप देख रहे हैं, मेहता ने मुझे इस बुरी तरह फूँका है कि निकलने को कोई रास्ता ही नहीं रहा। गोविंदी से बुनियाद का पत्थर रखवाएँगे। ऐसी दशा में मेरा अलग रहना हास्यास्पद है या नहीं? गोविंदी कैसे राजी हो गई, मेरी समझ में नहीं आता और मालती ने कैसे उसे सहन कर लिया, यह समझना और भी कठिन है। आपका क्या खयाल है, इसमें कोई रहस्य है या नहीं?

रायसाहब ने आत्मीयता जताई - ऐसे मुआमले में स्त्री को हमेशा पुरुष से सलाह ले लेनी चाहिए!

खन्ना ने रायसाहब को धन्यवाद की आँखों से देखा - इन्हीं बातों पर गोविंदी से मेरा जी जलता है, और उस पर मुझी को लोग बुरा कहते हैं। आप ही सोचिए, मुझे इन झगड़ों से क्या मतलब? इनमें तो वह पड़े, जिसके पास फालतू रुपए हों फालतू समय हो और नाम की हवस हो। होना यही है कि दो-चार महाशय सेक्रेटरी और अंडर सेक्रेटरी और प्रधान और उपप्रधान बन कर अफसरों को दावतें देंगे, उनके कृपापात्र बनेंगे और यूनिवर्सिटी की छोकरियों को जमा करके बिहार करेंगे। व्यायाम तो केवल दिखाने के दाँत हैं। ऐसी संस्था में हमेशा यही होता है और यही होगा और उल्लू बनेंगे हम, और हमारे भाई, जो धनी कहलाते हैं और यह सब गोविंदी के कारण।

वह एक बार कुरसी से उठे, फिर बैठ गए। गोविंदी के प्रति उनका क्रोध प्रचंड होता जाता था। उन्होंने दोनों हाथ से सिर को सँभाल कर कहा - मैं नहीं समझता, मुझे क्या करना चाहिए।

रायसाहब ने ठकुरसोहाती की - कुछ नहीं, आप गोविंदी देवी से साफ कह दें, तुम मेहता को इंकारी खत लिख दो, छुट्टी हुई। मैं तो लाग-डाँट में फँस गया। आप क्यों फँसें?

खन्ना ने एक क्षण इस प्रस्ताव पर विचार करके कहा - लेकिन सोचिए, कितना मुश्किल काम है। लेडी विलसन से जिक्र आ चुका होगा, सारे शहर में खबर फैल गई होगी और शायद आज पत्रों में भी निकल जाए। यह सब मालती की शरारत है। उसी ने मुझे जिच करने का यह ढंग निकाला है।

'हाँ, मालूम तो यही होता है।'

'वह मुझे जलील करना चाहती है।'

'आप शिलान्यास के दिन बाहर चले जाइएगा।'

'मुश्किल है रायसाहब! कहीं मुँह दिखाने की जगह न रहेगी। उस दिन तो मुझे हैजा भी हो जाए तो वहाँ जाना पड़ेगा।'

 

 

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