मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-23

पेज-240

सहुआइन ऐसी विनोद-भरी चापलूसियों से निरस्त्र हो जाती थी। मुस्कराती हुई अपनी राह चली गई। होरी लपक कर बैलों के पास पहुँच गया और उन्हें पौर में डाल कर चक्कर देने लगा। सारे गाँव का यही एक खलिहान था। कहीं मँड़ाई हो रही थी, कोई अनाज ओसा रहा था, कोई गल्ला तौल रहा था! नाई-बारी, बढ़ई, लोहार, पुरोहित, भाट, भिखारी, सभी अपने-अपने जेवरे लेने के लिए जमा हो गए थे। एक पेड़ के नीचे झिंगुरीसिंह खाट पर बैठे अपने सवाई उगाह रहे थे। कई बनिए खड़े गल्ले का भाव-ताव कर रहे थे। सारे खलिहान में मंडी की सी रौनक थी। एक खटकिन बेर और मकोय बेच रही थी और एक खोंचे वाला तेल के सेब और जलेबियाँ लिए फिर रहा था। पंडित दातादीन भी होरी से अनाज बँटवाने के लिए आ पहुँचे थे और झिंगुरीसिंह के साथ खाट पर बैठे थे।

दातादीन ने सुरती मलते हुए कहा - कुछ सुना, सरकार भी महाजनों से कह रही है कि सूद का दर घटा दो, नहीं डिगरी न मिलेगी।

झिंगुरी तमाखू फाँक कर बोले - पंडित, मैं तो एक बात जानता हूँ। तुम्हें गरज पड़ेगी तो सौ बार हमसे रुपए उधर लेने आओेगे, और हम जो ब्याज चाहेंगे, लेंगे। सरकार अगर असामियों को रुपए उधार देने का कोई बंदोबस्त न करेगी, तो हमें इस कानून से कुछ न होगा। हम दर कम लिखाएँगे, लेकिन एक सौ में पचीस पहले ही काट लेंगे। इसमें सरकार क्या कर सकती है?

'यह तो ठीक है, लेकिन सरकार भी इन बातों को खूब समझती है। इसकी भी कोई रोक निकालेगी, देख लेना।'

'इसकी कोई रोक हो ही नहीं सकती।'

'अच्छा, अगर वह सर्त कर दे, जब तक स्टांप पर गाँव के मुखिया या कारिंदा के दसखत न होंगे, वह पक्का न होगा, तब क्या करोगे?'

'असामी को सौ बार गरज होगी, मुखिया को हाथ-पाँव जोड़ के लाएगा और दसखत कराएगा। हम तो एक-चौथाई काट ही लेंगे।'

'और जो फँस जाओ। जाली हिसाब लिखा और गए चौदह साल को।'

झिंगुरीसिंह जोर से हँसा - तुम क्या कहते हो पंडित, क्या तब संसार बदल जायगा? कानून और न्याय उसका है, जिसके पास पैसा है। कानून तो है कि महाजन किसी असामी के साथ कड़ाई न करे, कोई जमींदार किसी कास्तकार के साथ सख्ती न करे, मगर होता क्या है। रोज ही देखते हो। जमींदार मुसक बँधवा के पिटवाता है और महाजन लात और जूते से बात करता है। जो किसान पोढ़ा है, उससे न जमींदार बोलता है, न महाजन। ऐसे आदमियों से हम मिल जाते हैं और उनकी मदद से दूसरे आदमियों की गर्दन दबाते हैं। तुम्हारे ही ऊपर रायसाहब के पाँच सौ रुपए निकलते हैं, लेकिन नोखेराम में है इतनी हिम्मत कि तुमसे कुछ बोले? वह जानते हैं, तुमसे मेल करने ही में उनका हित है। किस असामी में इतना बूता है कि रोज अदालत दौड़े? सारा कारबार इसी तरह चला जायगा जैसे चल रहा है। कचहरी अदालत उसी के साथ है, जिसके पास पैसा है। हम लोगों को घबड़ाने की कोई बात नहीं।

 

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