मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-24

पेज-255

उसी रात को सोना को बड़े जोर का ज्वर चढ़ आया।

तीसरे दिन गौरी महतो ने नाई के हाथ एक पत्र भेजा -

'स्वस्ती श्री सर्वोपमा जोग श्री होरी महतो को गौरीराम का राम-राम बाँचना। आगे जो हम लोगों में दहेज की बातचीत हुई थी, उस पर हमने सांत मन से विचार किया, समझ में आया कि लेन-देन से वर और कन्या दोनों ही के घरवाले जेरबार होते हैं। जब हमारा-तुम्हारा संबंध हो गया, तो हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि किसी को न अखरे! तुम दान-दहेज की कोई फिकर मत करना, हम तुमको सौगंध देते हैं। जो कुछ मोटा-महीन जुरे, बरातियों को खिला देना। हम वह भी न माँगेंगे। रसद का इंतजाम हमने कर लिया है। हाँ, तुम खुसी-खुर्रमी से हमारी जो खातिर करोगे। वह सिर झुका कर स्वीकार करेंगे।'

होरी ने पत्र पढ़ा और दौड़े हुए भीतर जा कर धनिया को सुनाया। हर्ष के मारे उछला पड़ता था, मगर धनिया किसी विचार में डूबी बैठी रही। एक क्षण के बाद बोली - यह गौरी महतो की भलमनसी है, लेकिन हमें भी तो अपने मरजाद का निबाह करना है। संसार क्या कहेगा! रूपया हाथ का मैल है। उसके लिए कुल-मरजाद नहीं छोड़ा जाता। जो कुछ हमसे हो सकेगा, देंगे और गौरी महतो को लेना पड़ेगा। तुम यही जवाब लिख दो। माँ-बाप की कमाई में क्या लड़की का कोई हक नहीं है? नहीं, लिखना क्या है, चलो, मैं नाई से संदेसा कहलाए देती हूँ।

होरी हतबुद्धि-सा आँगन में खड़ा था और धनिया उस उदारता की प्रतिक्रिया में, जो गौरी महतो की सज्जनता ने जगा दी थी, संदेशा कह रही थी। फिर उसने नाई को रस पिलाया और बिदाई दे कर विदा किया।

वह चला गया तो होरी ने कहा - यह तूने क्या कर डाला धनिया? तेरा मिजाज आज तक मेरी समझ में न आया। तू आगे भी चलती है, पीछे भी चलती है। पहले तो इस बात पर लड़ रही थी कि किसी से एक पैसा करज मत लो, कुछ देने-दिलाने का काम नहीं है और जब भगवान ने गौरी के भीतर बैठ कर यह पत्र लिखवाया, तो तूने कुल-मरजाद का राग छेड़ दिया। तेरा मरम भगवान ही जाने।

धनिया बोली - मुँह देख कर बीड़ा दिया जाता है, जानते हो कि नहीं? तब गौरी अपने सान दिखाते थे, अब वह भलमनसी दिखा रहे हैं। ईंट का जवाब चाहे पत्थर हो, लेकिन सलाम का जवाब तो गाली नहीं है।

होरी ने नाक सिकोड़ कर कहा - तो दिखा अपनी भलमनसी। देखें, कहाँ से रुपए लाती है।

धनिया आँखें चमका कर बोली - रुपए लाना मेरा काम नहीं, तुम्हारा काम है।

'मैं तो दुलारी से ही लूँगा।'

'ले लो उसी से। सूद तो सभी लेंगे। जब डूबना ही है, तो क्या तालाब और क्या गंगा?'

होरी बाहर आ कर चिलम पीने लगा। कितने मजे से गला छूटा जाता था, लेकिन धनिया जब जान छोड़े तब तो। जब देखो, उल्टी ही चलती है। इसे जैसे कोई भूत सवार हो जाता है। घर की दसा देख कर भी इसकी आँखें नहीं खुलतीं|

 

 

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