धनिया उसे पानी का एक छींटा मार कर बोली - कुराह चले तुम्हारी बहन, मैं क्यों कुराह चलने लगी। मैं तो दुनिया की बात कहती हूँ, तुम मुझे गालियाँ देने लगे। अब मुँह मीठा हो गया होगा। औरत चाहे जिस रास्ते जाय, मरद टुकुर-टुकुर देखता रहे। ऐसे मरद को मैं मरद नहीं कहती। होरी दिल में कटा जाता था। भोला उससे अपना दुख-दर्द कहने आया होगा। वह उल्टे उसी पर टूट पड़ी। जरा गर्म हो कर बोला - तू जो सारे दिन अपने ही मन की किया करती है, तो मैं तेरा क्या बिगाड़ लेता हूँ? कुछ कहता हूँ तो काटने दौड़ती है। यही सोच। धनिया ने लल्लो-चप्पो करना न सीखा था, बोली - औरत घी का घड़ा लुढ़का दे, घर में आग लगा दे, मरद सह लेगा, लेकिन उसका कुराह चलना कोई मरद न सहेगा। भोला दुखित स्वर में बोला - तू बहुत ठीक कहती है धनिया। बेसक मुझे उसका सिर काट लेना चाहिए था, लेकिन अब उतना पौरुख तो नहीं रहा। तू चल कर समझा दे, मैं सब कुछ करके हार गया। 'जब औरत को बस में रखने का बूता न था, तो सगाई क्यों की थी? इसी छीछालेदर के लिए? क्या सोचते थे, वह आ कर तुम्हारे पैर दबाएगी, तुम्हें चिलम भर-भर पिलाएगी और जब तुम बीमार पड़ोगे, तो तुम्हारी सेवा करेगी? तो ऐसा वही औरत कर सकती है, जिसने तुम्हारे साथ जवानी का सुख उठाया हो। मेरी समझ में यही नहीं आता कि तुम उसे देख कर लट्टू कैसे हो गए! कुछ देखभाल तो कर लिया होता कि किस स्वभाव की है, किस रंग-ढंग की है। तुम तो भूखे सियार की तरह टूट पड़े। अब तो तुम्हारा धरम यही है कि गँड़ासे से उसका सिर काट लो। फाँसी ही तो पाओगे। फाँसी इस छीछालेदर से अच्छी।'
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