इधर मालती ने अपने बाग के लिए गोबर को माली रख लिया था। एक दिन वह किसी मरीज को देख कर आ रही थी कि रास्ते में पैट्रोल न रहा। वह खुद ड्राइव कर रही थी। फिक्र हुई पैट्रोल कहाँ से आए? रात के नौ बज गए थे और माघ का जाड़ा पड़ रहा था। सड़कों पर सन्नाटा हो गया था। कोई ऐसा आदमी नजर न आता था, जो कार को ढकेल कर पैट्रोल की दुकान तक ले जाए। बार-बार नौकर पर झुँझला रही थी। हरामखोर कहीं का, बेखबर पड़ा रहता है। संयोग से गोबर उधर से आ निकला। मालती को देख कर उसने हालत समझ ली और गाड़ी को दो फरलांग ठेल कर पैट्रोल की दुकान तक लाया। मालती ने प्रसन्न हो कर पूछा - नौकरी करोगे? गोबर ने धन्यवाद के साथ स्वीकार किया। पंद्रह रुपए वेतन तय हुआ। माली का काम उसे पसंद था। यही काम उसने किया था और उसमें मँजा हुआ था। मिल की मजदूरी में वेतन ज्यादा मिलता था, पर उस काम से उसे उलझन होती थी। दूसरे दिन गोबर ने मालती के यहाँ काम करना शुरू कर दिया। उसे रहने को एक कोठरी भी मिल गई। झुनिया भी आ गई। मालती बाग में आती तो झुनिया का बालक धूल-मिट्टी में खेलता फिरता। एक दिन मालती ने उसे एक मिठाई दे दी। बच्चा उस दिन से परच गया। उसे देखते ही उसके पीछे लग जाता और जब तक मिठाई न ले लेता, उसका पीछा न छोड़ता। एक दिन मालती बाग में आई तो बालक न दिखाई दिया। झुनिया से पूछा तो मालूम हुआ बच्चे को ज्वर आ गया है। मालती ने घबरा कर कहा - ज्वर आ गया। तो मेरे पास क्यों नहीं लाई? चल देखूँ। बालक खटोले पर ज्वर में अचेत पड़ा था। खपरैल की उस कोठरी में इतनी सीलन, इतना अँधेरा, और इस ठंड के दिनों में भी इतने मच्छर कि मालती एक मिनट भी वहाँ न ठहर सकी, तुरंत आ कर थर्मामीटर लिया और फिर जा कर देखा, एक सौ चार था! मालती को भय हुआ, कहीं चेचक न हो। बच्चे को अभी तक टीका नहीं लगा था। और अगर इस सीली कोठरी में रहा, तो भय था, कहीं ज्वर और न बढ़ जाए। सहसा बालक ने आँखें खोल दीं और मालती को खड़ी पा कर करुण नेत्रों से उसकी ओर देखा और उसकी गोद के लिए हाथ फैलाए। मालती ने उसे गोद में उठा लिया और थपकियाँ देने लगी। बालक मालती की गोद में आ कर जैसे किसी बड़े सुख का अनुभव करने लगा। अपनी जलती हुई उँगलियों से उसके गले की मोतियों की माला पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा। मालती ने नेकलेस उतार कर उसके गले में डाल दी। बालक की स्वार्थी प्रकृति इस दशा में भी सजग थी। नेकलेस पा कर अब उसे मालती की गोद में रहने की कोई ऐसी जरूरत न रही। यहाँ उसके छिन जाने का भय था। झुनिया की गोद इस समय ज्यादा सुरक्षित थी।
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