और उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा थी अपने घर वालों को खुश देखना। उनकी गरीबी कैसे दूर कर दे? उस गाय की याद अभी तक उसके दिल में हरी थी, जो मेहमान की तरह आई थी और सबको रोता छोड़ कर चली गई थी। वह स्मृति इतने दिनों के बाद और भी मृदु हो गई थी। अभी उसका निजत्व इस नए घर में न जम पाया था। वही पुराना घर उसका अपना घर था। वहीं के लोग अपने आत्मीय थे, उन्हीं का दु:ख उसका दु:ख और उन्हीं का सुख उसका सुख था। इस द्वार पर ढोरों का एक रेवड़ देख कर उसे वह हर्ष न हो सकता था, जो अपने द्वार पर एक गाय देख कर होता। उसके दादा की यह लालसा कभी पूरी न हुई थी। जिस दिन वह गाय आई थी, उन्हें कितना उछाह हुआ था। जैसे आकाश से कोई देवी आ गई हो। तब से फिर उन्हें इतनी समाई ही न हुई कि दूसरी गाय लाते, पर वह जानती थी, आज भी वह लालसा होरी के मन में उतनी ही सजग है। अबकी वह जायगी, तो साथ वह धौरी गाय जरूर लेती जायगी। नहीं, अपने आदमी के हाथ क्यों न भेजवा दे। रामसेवक से पूछने की देर थी। मंजूरी हो गई, और दूसरे दिन एक अहीर के मारफत रूपा ने गाय भेज दी। अहीर से कहा - दादा से कह देना, मंगल के दूध पीने के लिए भेजी है। होरी भी गाय लेने की फिक्र में था। यों अभी उसे गाय की कोई जल्दी न थी, मगर मंगल यहीं है और वह बिना दूध के कैसे रह सकता है! रुपए मिलते ही वह सबसे पहले गाय लेगा। मंगल अब केवल उसका पोता नहीं है, केवल गोबर का बेटा नहीं है, मालती देवी का खिलौना भी है। उसका लालन-पालन उसी तरह का होना चाहिए। मगर रुपए कहाँ से आएँ? संयोग से उसी दिन एक ठीकेदार ने सड़क के लिए गाँव के ऊसर में कंकड़ की खुदाई शुरू की। होरी ने सुना तो चट-पट वहाँ जा पहुँचा, और आठ आने रोज पर खुदाई करने लगा, अगर यह काम दो महीने भी टिक गया तो गाय भर को रुपए मिल जाएँगे। दिन-भर लू और धूप में काम करने के बाद वह घर आता, तो बिलकुल मरा हुआ, लेकिन अवसाद का नाम नहीं। उसी उत्साह से दूसरे दिन फिर काम करने जाता। रात को भी खाना खा कर ढिबरी के सामने बैठ जाता और सुतली कातता। कहीं बारह-एक बजे सोने जाता। धनिया भी पगला गई थी, उसे इतनी मेहनत करने से रोकने के बदले खुद उसके साथ बैठी-बैठी सुतली कातती। गाय तो लेनी ही है, रामसेवक के रुपए भी तो अदा करने हैं। गोबर कह गया है। उसे बड़ी चिंता है। रात के बारह बज गए थे। दोनों बैठे सुतली कात रहे थे। धनिया ने कहा - तुम्हें नींद आती हो तो जाके सो रहो। भोरे फिर तो काम करना है। होरी ने आसमान की ओर देखा - चला जाऊँगा। अभी तो दस बजे होंगे। तू जा, सो रह।
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