दुलारी सहुआइन ने आग पर घी डाला - बाकी बड़ी गाल-दराज औरत है भाई! मरद के मुँह लगती है। होरी ही जैसा मरद है कि इसका निबाह होता है। दूसरा मरद होता तो एक दिन न पटती। अगर हीरा इस समय जरा नर्म हो जाता तो उसकी जीत हो जाती, लेकिन ये गालियाँ सुन कर आपे से बाहर हो गया। औरों को अपने पक्ष में देख कर वह कुछ शेर हो रहा था। गला फाड़ कर बोला - चली जा मेरे द्वार से, नहीं जूतों से बात करूँगा। झोंटा पकड़ कर उखाड़ लूँगा। गाली देती है डाइन! बेटे का घमंड हो गया है। खून... पाँसा पलट गया। होरी का खून खौल उठा। बारूद में जैसे चिनगारी पड़ गई हो। आगे आ कर बोला - अच्छा बस, अब चुप हो जाओ हीरा, अब नहीं सुना जाता। मैं इस औरत को क्या कहूँ! जब मेरी पीठ में धूल लगती है, तो इसी के कारन। न जाने क्यों इससे चुप नहीं रहा जाता। चारों ओर से हीरा पर बौछार पड़ने लगी। दातादीन ने निर्लज्ज कह - पटेश्वरी ने गुंडा बनाया, झिंगुरीसिंह ने शैतान की उपाधि दी। दुलारी सहुआइन ने कपूत कहा - एक उद्धंड शब्द ने धनिया का पल्ला हल्का कर दिया था। दूसरे उग्र शब्द ने हीरा को गच्चे में डाल दिया। उस पर होरी के संयत वाक्य ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। हीरा सँभल गया। सारा गाँव उसके विरुद्ध हो गया। अब चुप रहने में ही उसकी कुशल है। क्रोध के नशे में भी इतना होश उसे बाकी था। धनिया का कलेजा दूना हो गया। होरी से बोली - सुन लो कान खोल के। भाइयों के लिए मरते हो। यह भाई हैं, ऐसे भाई को मुँह न देखे। यह मुझे जूतों से मारेगा। खिला-पिला.......... होरी ने डाँटा - फिर क्यों बक-बक करने लगी तू! घर क्यों नहीं जाती? धनिया जमीन पर बैठ गई और आर्त स्वर में बोली - अब तो इसके जूते खा के जाऊँगी। जरा इसकी मरदुमी देख लूँ, कहाँ है गोबर? अब किस दिन काम आएगा? तू देख रहा है बेटा, तेरी माँ को जूते मारे जा रहे हैं! यों विलाप करके उसने अपने क्रोध के साथ होरी के क्रोध को भी क्रियाशील बना डाला। आग को फूँक-फूँक कर उसमें ज्वाला पैदा कर दी। हीरा पराजित-सा पीछे हट गया। पुन्नी उसका हाथ पकड़ कर घर की ओर खींच रही थी। सहसा धनिया ने सिंहनी की भाँति झपट कर हीरा को इतने जोर से धक्का दिया कि वह धम से गिर पड़ा और बोली - कहाँ जाता है, जूते मार, मार जूते, देखूँ तेरी मरदुमी! होरी ने दौड़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और घसीटता हुआ घर ले चला।
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