मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-6

पेज-52

अपने जगह पर बैठे-बैठे बोले - जी नहीं, मैं किसी का दीन नहीं बिगाड़ता। यह काम आपको खुद करना चाहिए। मजा तो जब है कि आप उन्हें शराब पिला कर छोड़ें। यह आपके हुस्न के जादू की आजमाइश है।

चारों तरफ से आवाजें आईं - हाँ-हाँ, मिस मालती, आज अपना कमाल दिखाइए। मालती ने मिर्जा को ललकारा - कुछ इनाम दोगे?

'सौ रुपए की एक थैली।'

'हुश! सौ रुपए! लाख रुपए का धर्म बिगाडूँ सौ के लिए।'

'अच्छा, आप खुद अपनी फीस बताइए।'

'एक हजार, कौड़ी कम नहीं।'

'अच्छा, मंजूर।'

'जी नहीं, ला कर मेहता जी के हाथ में रख दीजिए।'

मिर्जा जी ने तुरंत सौ रुपए का नोट जेब से निकाला और उसे दिखाते हुए खड़े हो कर बोले- भाइयो! यह हम सब मरदों की इज्जत का मामला है। अगर मिस मालती की फरमाइश न पूरी हुई, तो हमारे लिए कहीं मुँह दिखाने की जगह न रहेगी। अगर मेरे पास रुपए होते, तो मैं मिस मालती की एक-एक अदा पर एक-एक लाख कुरबान कर देता। एक पुराने शायर ने अपने माशूक के एक काले तिल पर समरकंद और बोखारा के सूबे कुरबान कर दिए थे। आज आप सभी साहबों की जवाँमरदी और हुस्नपरस्ती का इम्तहान है। जिसके पास जो कुछ हो, सच्चे सूरमा की तरह निकाल कर रख दे। आपको इल्म की कसम, माशूक की अदाओं की कसम, अपनी इज्जत की कसम, पीछे कदम न हटाइए। मरदों! रुपए खर्च हो जाएँगे, नाम हमेशा के लिए रह जायगा। ऐसा तमाशा लाखों में भी सस्ता है। देखिए, लखनऊ के हसीनों की रानी एक जाहिद पर अपने हुस्न का मंत्र कैसे चलाती है?

भाषण समाप्त करते ही मिर्जा जी ने हर एक की जेब की तलाशी शुरू कर दी। पहले मिस्टर खन्ना की तलाशी हुई। उनकी जेब से पाँच रुपए निकले।

मिर्जा ने मुँह फीका करके कहा - वाह खन्ना साहब, वाह! नाम बड़े दर्शन थोड़े, इतनी कंपनियों के डाइरेक्टर, लाखों की आमदनी और आपके जेब में पाँच रुपए। लाहौल विला कूवत कहाँ हैं मेहता? आप जरा जा कर मिसेज खन्ना से कम-से कम सौ रुपए वसूल कर लाएँ।

खन्ना खिसिया कर बोले - अजी, उनके पास एक पैसा भी न होगा। कौन जानता था कि यहाँ आप तलाशी लेना शुरू करेंगे?

'खैर, आप खामोश रहिए। हम अपनी तकदीर तो आजमा लें।'

'अच्छा, तो मैं जा कर उनसे पूछता हूँ।'

'जी नहीं, आप यहाँ से हिल नहीं सकते। मिस्टर मेहता, आप फिलासफर हैं, मनोविज्ञान के पंडित। देखिए, अपनी भद न कराइएगा।'

मेहता शराब पी कर मस्त हो जाते थे। उस मस्ती में उनका दर्शन उड़ जाता था और विनोद सजीव हो जाता था। लपक कर मिसेज खन्ना के पास गए और पाँच मिनट ही में मुँह लटकाए लौट आए।

मिर्जा ने पूछा - अरे, क्या खाली हाथ?

रायसाहब हँसे - काजी के घर चूहे भी सयाने।

मिर्जा ने कहा - हो बड़े खुशनसीब खन्ना, खुदा की कसम।

मेहता ने कहकहा मारा और जेब से सौ-सौ रुपए के पाँच नोट निकाले।

मिर्जा ने लपक कर उन्हें गले लगा लिया।

चारों तरफ से आवाजें आने लगीं - कमाल है, मानता हूँ उस्ताद, क्यों न हो, फिलासफर ही जो ठहरे!

मिर्जा ने नोटों को आँखों से लगा कर कहा - भई मेहता, आज से मैं तुम्हारा शागिर्द हो गया। बताओ, क्या जादू मारा?

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

 

 

 

Kamasutra in Hindi

 

 

top