संपादक जी का चेहरा फूल उठा था, आँखें झुकी पड़ती थीं। दूसरा ग्लास भर कर बोले - यह मिल मालती की सेहत का जाम है। आप लोग पिएँ और उन्हें आशीर्वाद दें। लोगों ने फिर अपने-अपने ग्लास खाली कर दिए। उसी वक्त मिर्जा खुर्शेद ने एक माला ला कर संपादक जी के गले में डाल दी और बोले - सज्जनों, फिदवी ने अभी अपने पूज्य सदर साहब की शान में एक कसीदा कहा है। आप लोगों की इजाजत हो तो सुनाऊँ। चारों तरफ से आवाजें आई - हाँ-हाँ, जरूर सुनाइए। ओंकारनाथ भंग तो आए दिन पिया करते थे और उनका मस्तिष्क उसका अभ्यस्त हो गया था, मगर शराब पीने का उन्हें यह पहला अवसर था। भंग का नशा मंथर गति से एक स्वप्न की भाँति आता था और मस्तिष्क पर मेघ के समान छा जाता था। उनकी चेतना बनी रहती थी। उन्हें खुद मालूम होता था कि इस समय उनकी वाणी बड़ी लच्छेदार है, और उनकी कल्पना बहुत प्रबल। शराब का नशा उनके ऊपर सिंह की भाँति झपटा और दबोच बैठा। वह कहते कुछ हैं, मुँह से निकलता कुछ है। फिर यह ज्ञान भी जाता रहा। वह क्या कहते हैं और क्या करते हैं, इसकी सुधि ही न रही। यह स्वप्न का रोमानी वैचित्रय न था, जागृति का वह चक्कर था, जिसमें साकार निराकार हो जाता है। न जाने कैसे उनके मस्तिष्क में यह कल्पना जाग उठी कि कसीदा पढ़ना कोई बड़ा अनुचित काम है। मेज पर हाथ पटक कर बोले - नहीं, कदापि नहीं। यहाँ कोई कसीदा नईं ओगा, नईं ओगा। हम सभापति हैं। हमारा हुक्म है। हम अबी इस सब को तोड़ सकते हैं। अबी तोड़ सकते हैं। सभी को निकाल सकते हैं। कोई हमारा कुछ नईं कर सकता। हम सभापति हैं। कोई दूसरा सभापति नईं है। मिर्जा ने हाथ जोड़ कर कहा - हुजूर, इस कसीदे में तो आपकी तारीफ की गई है। संपादक जी ने लाल, पर ज्योतिहीन नेत्रों से देखा - तुम हमारी तारीफ क्यों की? क्यों की? बोलो, क्यों हमारी तारीफ की? हम किसी का नौकर नईं है। किसी के बाप का नौकर नईं है, किसी साले का दिया नहीं खाते। हम खुद संपादक है। हम 'बिजली' का संपादक है। हम उसमें सबका तारीफ करेगा। देवी जी, हम तुम्हारा तारीफ नईं करेगा। हम कोई बड़ा आदमी नईं है। हम सबका गुलाम है। हम आपका चरण-रज है। मालती देवी हमारी लक्ष्मी, हमारी सरस्वती, हमारी राधा... यह कहते हुए वे मालती के चरणों की तरफ झुके और मुँह के बल फर्श पर गिर पड़े। मिर्जा खुर्शेद ने दौड़ कर उन्हें सँभाला और कुर्सियाँ हटा कर वहीं जमीन पर लिटा दिया। फिर उनके कानों के पास मुँह ले जा कर बोले - राम-राम सत्त है! कहिए तो आपका जनाजा निकालें? रायसाहब ने कहा - कल देखना कितना बिगड़ता है। एक-एक को अपने पत्र में रगेदेगा। और ऐसा रगेदेगा कि आप भी याद करेंगे! एक ही दुष्ट है, किसी पर दया नहीं करता। लिखने में तो अपना जोड़ नहीं रखता। ऐसा गधा आदमी कैसे इतना अच्छा लिखता है, यह रहस्य है।
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