मिर्जा ने घिघिया कर कहा - देवी जी, खुदा के लिए इस मूजी को रुपए दे दीजिए। खन्ना ने हाथ जोड़ कर याचना की - हमारे ऊपर दया करो मिस मालती! रायसाहब तन कर बोले - हरगिज नहीं। आज जो कुछ होना है, हो जाने दीजिए। या तो हम खुद मर जाएँगे, या इन जालिमों को हमेशा के लिए सबक दे देंगे। तंखा ने रायसाहब को डाँट बताई - शेर की माँद में घुसना कोई बहादुरी नहीं है। मैं इसे मूर्खता समझता हूँ। मगर मिस मालती के मनोभाव कुछ और ही थे। खान के लालसा-प्रदीप्त नेत्रों ने उन्हें आश्वस्त कर दिया था और अब इस कांड में उन्हें मनचलेपन का आनंद आ रहा था। उनका हृदय कुछ देर इन नरपुंगवों के बीच में रह कर उसके बर्बर प्रेम का आनंद उठाने के लिए ललचा रहा था। शिष्ट प्रेम की दुर्बलता और निर्जीवता का उन्हें अनुभव हो चुका था। आज अक्खड़, अनगढ़ पठानों के उन्मत्त प्रेम के लिए उनका मन दौड़ रहा था, जैसे संगीत का आनंद उठाने के बाद कोई मस्त हाथियों की लड़ाई देखने के लिए दौड़े। उन्होंने खान साहब के सामने जा कर निश्शंक भाव से कहा - तुम्हें रुपए नहीं मिलेंगे। खान ने हाथ बढ़ा कर कहा- तो अम तुमको लूट ले जायगा। 'तुम इतने आदमियों के बीच से हमें नहीं ले जा सकते।' 'अम तुमको एक हजार आदमियों के बीच से ले जा सकता है।' 'तुमको जान से हाथ धोना पड़ेगा।' 'अम अपने माशूक के लिए अपने जिस्म का एक-एक बोटी नुचवा सकता है।' उसने मालती का हाथ पकड़ कर खींचा। उसी वक्त होरी ने कमरे में कदम रखा। वह राजा जनक का माली बना हुआ था और उसके अभिनय ने देहातियों को हँसाते-हँसाते लोटा दिया था। उसने सोचा, मालिक अभी तक क्यों नहीं आए? वह भी तो आ कर देखें कि देहाती इस काम में कितने कुशल होते हैं। उनके यार-दोस्त भी देखें। कैसे मालिक को बुलाए - वह अवसर खोज रहा था, और ज्यों ही मुहलत मिली, दौड़ा हुआ यहाँ आया, मगर यहाँ का दृश्य देख कर भौंचक्का-सा खड़ा रह गया। सब लोग चुप्पी साधे, थर-थर काँपते, कातर नेत्रों से खान को देख रहे थे और खान मालती को अपने तरफ खींच रहा था। उसकी सहज बुद्धि ने परिस्थिति का अनुमान कर लिया। उसी वक्त रायसाहब ने पुकारा- होरी, दौड़ कर जा और सिपाहियों को बुला ला, जल्द दौड़! होरी पीछे मुड़ा था कि खान ने उसके सामने बंदूक तान कर डाँटा - कहाँ जाता है? सुअर अम गोली मार देगा। होरी गँवार था। लाल पगड़ी देख कर उसके प्राण निकल जाते थे, लेकिन मस्त सांड़ पर लाठी ले कर पिल पड़ता था। वह कायर न था, मारना और मरना दोनों ही जानता था, मगर पुलिस के हथकंडों के सामने उसकी एक न चलती थी। बँधे-बँधे कौन फिरे, रिश्वत के रुपए कहाँ से लाए, बाल-बच्चों को किस पर छोड़े; मगर जब मालिक ललकारते हों, तो फिर किसका डर? तब तो वह मौत के मुँह में भी कूद सकता है। उसने झपट कर खान की कमर पकड़ी और ऐसा अड़ंगा मारा कि खान चारों खाने चित्ता जमीन पर आ रहा और लगा पश्तो में गालियाँ देने। होरी उसकी छाती पर चढ़ बैठा और जोर से दाढ़ी पकड़ कर खींची। दाढ़ी उसके हाथ में आ गई। खान ने तुरंत अपनी कुलाह उतार फेंकी और जोर मार कर खड़ा हो गया। अरे! यह तो मिस्टर मेहता हैं। वाह! लोगों ने चारों तरफ से मेहता को घेर लिया। कोई उनके गले लगता, कोई उनकी पीठ पर थपकियाँ देता था और मिस्टर मेहता के चेहरे पर न हँसी थी, न गर्व, चुपचाप खड़े थे, मानो कुछ हुआ ही नहीं। मालती ने नकली रोष से कहा - आपने यह बहुरूपपन कहाँ सीखा? मेरा दिल अभी तक धड़-धड़ कर रहा है। मेहता ने मुस्कराते हुए कहा - जरा इन भले आदमियों की जवाँमर्दी की परीक्षा ले रहा था। जो गुस्ताखी हुई हो, उसे क्षमा कीजिएगा।
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