मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-7

पेज-63

आठ बजे शिकार-पार्टी चली। खन्ना ने कभी शिकार न खेला था, बंदूक की आवाज से काँपते थे, लेकिन मिस मालती जा रही थीं, वह कैसे रूक सकते थे। मिस्टर तंखा को अभी तक एलेक्शन के विषय में बातचीत करने का अवसर न मिला था। शायद वहाँ वह अवसर मिल जाए। रायसाहब अपने इलाके में बहुत दिनों से नहीं गए थे। वहाँ का रंग-ढंग देखना चाहते थे। कभी-कभी इलाके में आने-जाने से असामियों से एक संबंध भी तो हो जाता है और रोब भी रहता है। कारकुन और प्यादे भी सचेत रहते हैं। मिर्जा खुर्शेद को जीवन के नए अनुभव प्राप्त करने का शौक था, विशेषकर ऐसे, जिनमें कुछ साहस दिखाना पड़े। मिस मालती अकेले कैसे रहतीं। उन्हें तो रसिकों का जमघट चाहिए। केवल मिस्टर मेहता शिकार खेलने के सच्चे उत्साह से जा रहे थे। रायसाहब की इच्छा तो थी कि भोजन की सामग्री, रसोइया, कहा - खिदमतगार, सब साथ चलें, लेकिन मिस्टर मेहता ने इसका विरोध किया।

खन्ना ने कहा - आखिर वहाँ भोजन करेंगे या भूखों मरेंगे?

मेहता ने जवाब दिया - भोजन क्यों न करेंगे, लेकिन आज हम लोग खुद अपना सारा काम करेंगे। देखना तो चाहिए कि नौकरों के बगैर हम जिंदा रह सकते हैं या नहीं। मिस मालती पकाएगी और हम लोग खाएगें। देहातों में हाँड़ियाँ और पत्तल मिल ही जाते हैं, और ईंधन की कोई कमी नहीं। शिकार हम करेंगे ही।

मालती ने गिला किया - क्षमा कीजिए। आपने रात मेरी कलाई इतने जोर से पकड़ी कि अभी तक दर्द हो रहा है।

'काम तो हम लोग करेंगे, आप केवल बताती जाइएगा।'

मिर्जा खुर्शेद बोले - अजी आप लोग तमाशा देखते रहिएगा, मैं सारा इंतजाम कर दूँगा। बात ही कौन-सी है। जंगल में हाँड़ी और बर्तन ढूँढ़ना हिमाकत है। हिरन का शिकार कीजिए, भूनिए, खाइए और वहीं दरख्त के साए में खर्राटे लीजिए।

यही प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। दो मोटरें चलीं। एक मिस मालती ड्राइव कर रही थीं, दूसरी खुद रायसाहब। कोई बीस-पच्चीस मील पर पहाड़ी प्रांत शुरू हो गया। दोनों तरफ ऊँची पर्वत-माला दौड़ी चली आ रही थी। सड़क भी पेंचदार होती जाती थी। कुछ दूर की चढ़ाई के बाद एकाएक ढाल आ गया और मोटर वेग से नीचे की ओर चली। दूर से नदी का पाट नजर आया, किसी रोगी की भाँति दुर्बल, निस्पंद। कगार पर एक घने वट वृक्ष की छाँह में कारें रोक दी गईं और लोग उतरे। यह सलाह हुई कि दो-दो की टोली बने और शिकार खेल कर बारह बजे तक यहाँ आ जाए। मिस मालती मेहता के साथ चलने को तैयार हो गईं। खन्ना मन में ऐंठ कर रह गए। जिस विचार से आए थे, उसमें जैसे पंचर हो गया। अगर जानते, मालती दगा देगी, तो घर लौट जाते, लेकिन रायसाहब का साथ उतना रोचक न होते हुए भी बुरा न था। उनसे बहुत-सी मुआमले की बातें करनी थीं। खुर्शेद और तंखा बच रहे। उनकी टोली बनी-बनाई थी। तीनों टोलियाँ एक-एक तरफ चल दीं।

 

 

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