मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-7

पेज-68

मेहता ने उसे धन्यवाद देते हुए कहा - तुम बड़े मौके से पहुँच गईं, नहीं मुझे न जाने कितनी दूर तैरना पड़ता।

युवती ने प्रसन्नता से कहा - मैंने तुम्हें तैरते आते देखा, तो दौड़ी। सिकार खेलने आए होंगे?'

'हाँ, आए तो थे शिकार ही खेलने, मगर दोपहर हो गया और यही चिड़िया मिली है।'

'तेंदुआ मारना चाहो, तो मैं उसका ठौर दिखा दूँ। रात को यहाँ रोज पानी पीने आता है। कभी-कभी दोपहर में भी आ जाता है।'

फिर जरा सकुचा कर सिर झुकाए बोली - उसकी खाल हमें देनी पड़ेगी। चलो, मेरे द्वार पर। वहाँ पीपल की छाया है। यहाँ धूप में कब तक खड़े रहोगे? कपड़े भी तो गीले हो गए हैं।

मेहता ने उसकी देह में चिपकी हुई गीली साड़ी की ओर देख कर कहा - तुम्हारे कपड़े भी तो गीले हैं।

उसने लापरवाही से कहा - ऊँह हमारा क्या, हम तो जंगल के हैं। दिन-दिन भर धूप और पानी में खड़े रहते हैं, तुम थोड़े ही रह सकते हो।

लड़की कितनी समझदार है और बिलकुल गँवार।

'तुम खाल ले कर क्या करोगी?'

'हमारे दादा बाजार में बेचते हैं। यही तो हमारा काम है।'

'लेकिन दोपहरी यहाँ काटें, तुम खिलाओगी क्या?'

युवती ने लजाते हुए कहा - तुम्हारे खाने लायक हमारे घर में क्या है। मक्के की रोटियाँ खाओ, तो धरी हैं। चिड़िए का सालन पका दूँगी। तुम बताते जाना, जैसे बनाना हो। थोड़ा-सा दूध भी है। हमारी गैया को एक बार तेंदुए ने घेरा था। उसे सींगों से भगा कर भाग आई, तब से तेंदुआ उससे डरता है।

'लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ। मेरे साथ एक औरत भी है।'

'तुम्हारी घरवाली होगी?'

'नहीं, घरवाली तो अभी नहीं है, जान-पहचान की है।'

'तो मैं दौड़ कर उनको बुला लाती हूँ। तुम चल कर छाँह में बैठो।'

'नहीं-नहीं, मैं बुला लाता हूँ।'

तुम थक गए होगे। शहर के रहैया, जंगल में काहे आते होंगे। हम तो जंगली आदमी हैं। किनारे ही तो खड़ी होंगी।'

जब तक मेहता कुछ बोलें, वह हवा हो गई। मेहता ऊपर चढ़ कर पीपल की छाँह में बैठे, तो इस स्वच्छंद जीवन से उनके मन में अनुराग उत्पन्न हुआ। सामने की पर्वत-माला दर्शन-तत्व की भाँति अगम्य और अनंत फैली हुई, मानो ज्ञान का विस्तार कर रही हो, मानों आत्मा उस ज्ञान को, उस प्रकाश को, उस अगम्यता को, उसके प्रत्यक्ष विराट रूप में देख रही हो। दूर के एक बहुत ऊँचे शिखर पर एक छोटा-सा मंदिर था, जो उस अगम्यता में बुद्धि की भाँति ऊँचा, पर खोया हुआ-सा खड़ा था, मानो वहाँ तक पर मार कर पक्षी विश्राम लेना चाहता है और कहीं स्थान नहीं पाता।

मेहता इन्हीं विचारों में डूबे हुए थे कि युवती मिस मालती को साथ लिए आ पहुँची, एक वन-पुष्प की भाँति धूप में खिली हुई, दूसरी गमले के फूल की भाँति धूप में मुरझाई और निर्जीव।

मालती ने बेदिली के साथ कहा - पीपल की छाँह बहुत अच्छी लग रही है, क्यों और यहाँ भूख के मारे प्राण निकले जा रहे हैं।

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

 

 

 

Kamasutra in Hindi

 

 

top