मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-7

पेज-73

'मेरी ओर! मैं उस रसिक-समाज से बिलकुल बाहर हूँ मिस्टर खन्ना, सच कहता हूँ। मुझमें जितनी बुद्धि, जितना बल है, वह इस इलाके के प्रबंध में ही खर्च हो जाता है। घर के जितने प्राणी हैं, सभी अपनी-अपनी धुन में मस्त, कोई उपासना में, कोई विषय-वासना में। कोऊ काहू में मगन, कोऊ काहू में मगन। और इन सब अजगरों को भक्ष्य देना मेरा काम है, कर्तव्य है। मेरे बहुत से ताल्लुकेदार भाई भोग-विलास करते हैं, यह मैं जानता हूँ। मगर वह लोग घर फूँक कर तमाशा देखते हैं। कर्ज का बोझ सिर पर लदा जा रहा है, रोज डिगरियाँ हो रही हैं। जिससे लेते हैं, उसे देना नहीं जानते, चारों तरफ बदनाम। मैं तो ऐसी जिंदगी से मर जाना अच्छा समझता हूँ! मालूम नहीं, किस संस्कार से मेरी आत्मा में जरा-सी जान बाकी रह गई, जो मुझे देश और समाज के बंधन में बाँधे हुए है। सत्याग्रह-आंदोलन छिड़ा। मेरे सारे भाई शराब-कबाब में मस्त थे। मैं अपने को न रोक सका। जेल गया और लाखों रुपए की जेरबारी उठाई और अभी तक उसका तावान दे रहा हूँ। मुझे उसका पछतावा नहीं है। बिलकुल नहीं। मुझे उसका गर्व है! मैं उस आदमी को आदमी नहीं समझता, जो देश और समाज की भलाई के लिए उद्योग न करे और बलिदान न करे। मुझे क्या यह अच्छा लगता है कि निर्जीव किसानों का रक्त चूसूँ और अपने परिवारवालों की वासनाओं की तृप्ति के साधन जुटाऊँ, मगर क्या करूँ? जिस व्यवस्था में पला और जिया, उससे घृणा होने पर भी उसका मोह त्याग नहीं सकता और उसी चर्खे में रात-दिन पड़ा हुआ हूँ कि किसी तरह इज्जत-आबरू बची रहे, और आत्मा की हत्या न होने पाए। ऐसा आदमी मिस मालती क्या, किसी भी मिस के पीछे नहीं पड़ सकता, और पड़े तो उसका सर्वनाश ही समझिए। हाँ, थोड़ा-सा मनोरंजन कर लेना दूसरी बात है।'

मिस्टर खन्ना भी साहसी आदमी थे, संग्राम में आगे बढ़ने वाले। दो बार जेल हो आए थे। किसी से दबना न जानते थे। खद्दर पहनते थे और फ्रांस की शराब पीते थे। अवसर पड़ने पर बड़ी-बड़ी तकलीफे झेल सकते थे। जेल में शराब छुई तक नहीं, और 'ए' क्लास में रह कर भी 'सी' क्लास की रोटियाँ खाते रहे, हालाँकि, उन्हें हर तरह का आराम मिल सकता था, मगर रण-क्षेत्र में जाने वाला रथ भी तो बिना तेल के नहीं चल सकता। उनके जीवन में थोड़ी-सी रसिकता लाजिमी थी। बोले - आप संन्यासी बन सकते हैं, मैं तो नहीं बन सकता। मैं तो समझता हूँ, जो भोगी नहीं है, वह संग्राम में भी पूरे उत्साह से नहीं जा सकता। जो रमणी से प्रेम नहीं कर सकता, उसके देश-प्रेम में मुझे विश्वास नहीं।

राय साहब मुस्कराए - आप मुझी पर आवाजें कसने लगे।

'आवाज नहीं है, तत्व की बात है।'

'शायद हो।'

'आप अपने दिल के अंदर पैठ कर देखिए तो पता चले।'

'मैंने तो पैठ कर देखा है, और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, वहाँ और चाहे जितनी बुराइयाँ हों, विषय की लालसा नहीं है।'

'तब मुझे आपके ऊपर दया आती है। आप जो इतने दुखी और निराश और चिंतित हैं, इसका एकमात्र कारण आपका निग्रह है। मैं तो यह नाटक खेल कर रहूँगा, चाहे दु:खांत ही क्यों न हो। वह मुझसे मजाक करती है, दिखाती है कि मुझे तेरी परवाह नहीं है, लेकिन मैं हिम्मत हारने वाला मनुष्य नहीं हूँ। मैं अब तक उसका मिजाज नहीं समझ पाया। कहाँ निशाना ठीक बैठेगा, इसका निश्चय न कर सका। जिस दिन यह कुंजी मिल गई, बस फतह है।'

'लेकिन वह कुंजी आपको शायद ही मिले। मेहता शायद आपसे बाजी मार ले जायँ।'

एक हिरन कई हिरनियों के साथ चर रहा था, बड़ी सींगों वाला, बिलकुल काला। रायसाहब ने निशाना बाँधा। खन्ना ने रोका - क्यों हत्या करते हो यार बेचारा चर रहा है, चरने दो। धूप तेज हो गई। आइए कहीं बैठ जायँ। आपसे कुछ बातें करनी हैं।

रायसाहब ने बंदूक चलाई, मगर हिरन भाग गया। बोले - एक शिकार मिला भी तो निशाना खाली गया।

'एक हत्या से बचे।'

'हाँ कहिए, क्या कहने जा रहे थे।'

'आपके इलाके में ऊख होती है?'

'बड़ी कसरत से।'

'तो फिर क्यों न हमारे शुगर मिल में शामिल हो जाइए? हिस्से धड़ाधड़ बिक रहे हैं। आप ज्यादा नहीं, एक हजार हिस्से खरीद लें?'

'गजब किया, मैं इतने रुपए कहाँ से लाऊँगा?'

'इतने नामी इलाकेदार और आपको रूपयों की कमी! कुल पचास हजार ही तो होते हैं। उनमें भी अभी 25 फीसदी ही देना है।'

'नहीं भाई साहब, मेरे पास इस वक्त बिलकुल रुपए नहीं हैं।

 

 

 

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