'हुजूर के भी तो पंद्रह रुपए गए।' 'मेरे कहाँ जा सकते हैं? वह न देगा, गाँव के मुखिया देंगे और पंद्रह रुपए की जगह पूरे पचास रुपए। आप लोग चटपट इंतजाम कीजिए।' पटेश्वरीलाल ने हँस कर कहा - हुजूर बड़े दिल्लगीबाज हैं। दातादीन बोले - बड़े आदमियों के यही लक्षण हैं। ऐसे भाग्यवानों के दर्शन कहाँ होते हैं? दारोगा जी ने कठोर स्वर में कहा - यह खुशामद फिर कीजिएगा। इस वक्त तो मुझे पचास रुपए दिलवाइए, नकद, और यह समझ लो कि आनाकानी की, तो तुम चारों के घर की तलाशी लूँगा। बहुत मुमकिन है कि तुमने हीरा और होरी को फँसा कर उनसे सौ-पचास ऐंठने के लिए पाखंड रचा हो। नेतागण अभी तक यही समझ रहे हैं, दारोगा जी विनोद कर रहे हैं। झिंगुरीसिंह ने आँखें मार कर कहा - निकालो पचास रुपए पटवारी साहब! नोखेराम ने उनका समर्थन किया - पटवारी साहब का इलाका है। उन्हें जरूर आपकी खातिर करनी चाहिए। पंडित दातादीन की चौपाल आ गई। दारोगा जी एक चारपाई पर बैठ गए और बोले - तुम लोगों ने क्या निश्चय किया? रुपए निकालते हो या तलाशी करवाते हो? दातादीन ने आपत्ति की - मगर हुजूर........ 'मैं अगर-मगर कुछ नहीं सुनना चाहता।' झिंगुरीसिंह ने साहस किया - सरकार, यह तो सरासर... 'मैं पंद्रह मिनट का समय देता हूँ। अगर इतनी देर में पूरे पचास रुपए न आए तो तुम चारों के घर की तलाशी होगी। और गंडासिंह को जानते हो? उसका मारा पानी भी नहीं माँगता।' पटेश्वरीलाल ने तेज स्वर से कहा - आपको अख्तियार है, तलाशी ले लें। यह अच्छी दिल्लगी है, काम कौन करे, पकड़ा कौन जाए। 'मैंने पच्चीस साल थानेदारी की है, जानते हो?' 'लेकिन ऐसा अंधेर तो कभी नहीं हुआ।' 'तुमने अभी अंधेर नहीं देखा। कहो तो वह भी दिखा दूँ? एक-एक को पाँच-पाँच साल के लिए भेजवा दूँ। यह मेरे बाएँ हाथ का खेल है। एक डाके में सारे गाँव को काले पानी भेजवा सकता हूँ। इस धोखे में न रहना!' चारों सज्जन चौपाल के अंदर जा कर विचार करने लगे। फिर क्या हुआ, किसी को मालूम नहीं। हाँ, दारोगा जी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे और चारों सज्जनों के मुँह पर फटकार बरस रही थी। दारोगा जी घोड़े पर सवार हो कर चले, तो चारों नेता दौड़ रहे थे। घोड़ा दूर निकल गया तो चारों सज्जन लौटे, इस तरह मानो किसी प्रियजन का संस्कार करके श्मशान से लौट रहे हों। सहसा दातादीन बोले - मेरा सराप न पड़े तो मुँह न दिखाऊँ। नोखेराम ने समर्थन किया - ऐसा धन कभी फलते नहीं देखा। पटेश्वरी ने भविष्यवाणी - हराम की कमाई हराम में जायगी। झिंगुरीसिंह को आज ईश्वर की न्यायपरता में संदेह हो गया था। भगवान न जाने कहाँ है कि यह अंधेर देख कर भी पापियों को दंड नहीं देते। इस वक्त इन सज्जनों की तस्वीर खींचने लायक थी।
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