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खुदा हीं बुत बनके खड़ा है मेरे सामने

सौरभ कुमार

(Copyright © Saurabh Kumar)

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1.

खुदा हीं बुत बनके खड़ा है मेरे सामने
वो पूछते हैं हम क्यूँ कर रहे सजदा

2.

माना कि हम ठुकराये हुए पत्थर हैं,
फिर भी हम पत्थर हैं,
एक दिन बुत बना कर पूजे जायेंगे

3.

कौन कहता है मरकर खाली हाथ जायेंगे
जाते वक्त दिल में तेरा प्यार लेके जायेंगे
जिस्म यहाँ छोड़कर फिर जन्म पायेगा
मन का बना संस्कार हीं यहाँ से जा पायेगा
कुछ और ले जाकर क्या ले जा पायेंगे हम
दिल में बसा खुदा भी तो तुझे हीं जान पायेगा

4.

दिल हीं नहीं आदमी भी मजबूर होता है,
जुबाँ हीं नहीं खुद भी खामोश होता है

5.

किसी के नाम को खुदा बना देने से
खुदा की ख्वाहिशें तो खत्म नहीं होती
ख्वाहिशें हैं ख्वाहिशों को रहने दें हम
किसी ख्वाहिश का कत्ल क्यूँ करना

 

  सौरभ कुमार का साहित्य  

 

 

 

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