सूरदास
परिशिष्ट
पदों में आये मुख्य कथा-प्रसंग
श्रीकृष्ण-चरित
गोपबालक तथा बछड़े उसके मुख को गुफा समझकर उसमें चले भी गये थे | श्रीकृष्णचन्द्र
भी उन्हें बचाने उसके मुखमें गये और अपना शरीर इतना बढ़ा लिया कि असुरकी श्वास ही
रुक गयी | प्राणवायु रुकनेसे उसका मस्तक फट गया और वह मर गया |
मयदानव का पुत्र व्योमासुर गोपबालक बनकर गोपकुमारोंमें आ मिला था | वह खेलमें छल
पूर्वक गोपबालकों को ले जाकर गुफा में बंद कर देता था | श्रीकृष्णचंद्रने उसे पकड़
लिया तथा घूसे-थप्पड़ोंसे ही मार डाला | कंसका भेजा प्रलम्बासुर भी गोपबालक बनकर ही
आया था | वह खेलमें बलरामजीको पीठपर बैठाकर मथुरा भाग जाना चाहता था; किंतु बलराम
जीके एक ही घूसे से उसकी कपालक्रिया हो गयी | तालवनमें धेनुक नामका असुर गधेके
रूपमें अपने परिवारके साथ रहता था | गोपबालकों की ताड़ खानेकी इच्छा जानकर दोनों
भाई वहाँ गये | बलरामजीने धेनुकको पकड़कर ताड़के पेड़पर दे मारा | उसके परिवार के
राक्षस दौड़े आये तो उनको मारनेमें श्याम भी बड़े भाईकी सहायतामें जुट गये | कंसका
भेजा असुर अरिष्टासुर साँड बनकर आया था | उसे श्रीकृष्ण ने जब मार दिया, तब सबसे
अन्तमें केशी राक्षस आया घोड़ा बनकर | कन्हाई उसके मुखमें अपनी भुजा डाल दी | वह
भुजा इतनी बढ़ी कि केशीका शरीर ककड़ी के समान फट गया |
कुबेर का सेवक शंखचूड़ नामका यक्ष घूमता हुआ वृन्दावन आ गया था | उसने वनमें
क्रीड़ा करती गोपियों को पकड़ लिया और उन्हें लेकर भागा | किंतु गोपपियों की पुकार
सुनकर श्यामसुन्दर दौड़ पड़े | कुछ ही दूर जाकर यक्षका सिर एक घूसे से उन्होंने
चूर्ण कर दिया |
एक बार गोप अम्बिकावनकी यात्रा करने गये | वहाँ रात्रिमें सोते समय नन्दबाबाको एक
अजगरने पकड़ लिया और निगलने लगा | गोपों द्वारा मशालोंसे जलाये जाने पर भी जब उसने
व्रजराज को नहीं छोड़ा, तब श्रीकृष्णने आकर उसे चरणसे मारा | उनका -स्पर्श होते ही
अजगरका शरीर छूट गया | वह देवरूप धारण करके स्वर्ग चला गया |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217