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गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस

रामचरित मानस

लंकाकाण्ड

लंकाकाण्ड पेज 15

छतज नयन उर बाहु बिसाला। हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला।।
इहाँ दसानन सुभट पठाए। नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए।।
भूधर नख बिटपायुध धारी। धाए कपि जय राम पुकारी।।
भिरे सकल जोरिहि सन जोरी। इत उत जय इच्छा नहिं थोरी।।
मुठिकन्ह लातन्ह दातन्ह काटहिं। कपि जयसील मारि पुनि डाटहिं।।
मारु मारु धरु धरु धरु मारू। सीस तोरि गहि भुजा उपारू।।
असि रव पूरि रही नव खंडा। धावहिं जहँ तहँ रुंड प्रचंडा।।
देखहिं कौतुक नभ सुर बृंदा। कबहुँक बिसमय कबहुँ अनंदा।।

दो0-रुधिर गाड़ भरि भरि जम्यो ऊपर धूरि उड़ाइ।
जनु अँगार रासिन्ह पर मृतक धूम रह्यो छाइ।।53।।


घायल बीर बिराजहिं कैसे। कुसुमित किंसुक के तरु जैसे।।
लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा। भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा।।
एकहि एक सकइ नहिं जीती। निसिचर छल बल करइ अनीती।।
क्रोधवंत तब भयउ अनंता। भंजेउ रथ सारथी तुरंता।।
नाना बिधि प्रहार कर सेषा। राच्छस भयउ प्रान अवसेषा।।
रावन सुत निज मन अनुमाना। संकठ भयउ हरिहि मम प्राना।।
बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेज पुंज लछिमन उर लागी।।
मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें।।

दो0-मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ।
जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ।।54।।


सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू। जारइ भुवन चारिदस आसू।।
सक संग्राम जीति को ताही। सेवहिं सुर नर अग जग जाही।।
यह कौतूहल जानइ सोई। जा पर कृपा राम कै होई।।
संध्या भइ फिरि द्वौ बाहनी। लगे सँभारन निज निज अनी।।
ब्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर। लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर।।
तब लगि लै आयउ हनुमाना। अनुज देखि प्रभु अति दुख माना।।
जामवंत कह बैद सुषेना। लंकाँ रहइ को पठई लेना।।
धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेउ भवन समेत तुरंता।।

दो0-राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन।
कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन।।55।।


राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजन सुत बल भाषी।।
उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावन कालनेमि गृह आवा।।
दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना। पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना।।
देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा।।
भजि रघुपति करु हित आपना। छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना।।
नील कंज तनु सुंदर स्यामा। हृदयँ राखु लोचनाभिरामा।।
मैं तैं मोर मूढ़ता त्यागू। महा मोह निसि सूतत जागू।।
काल ब्याल कर भच्छक जोई। सपनेहुँ समर कि जीतिअ सोई।।

दो0-सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार।
राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार।।56।।

 

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