उत्तरकाण्ड
उत्तरकाण्ड पेज 30
सुनु खगेस नहिं कछु रिषि दूषन। उर प्रेरक रघुबंस बिभूषन।।
कृपासिंधु मुनि मति करि भोरी। लीन्हि प्रेम परिच्छा मोरी।।
मन बच क्रम मोहि निज जन जाना। मुनि मति पुनि फेरी भगवाना।।
रिषि मम महत सीलता देखी। राम चरन बिस्वास बिसेषी।।
अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई। सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई।।
मम परितोष बिबिध बिधि कीन्हा। हरषित राममंत्र तब दीन्हा।।
बालकरूप राम कर ध्याना। कहेउ मोहि मुनि कृपानिधाना।।
सुंदर सुखद मिहि अति भावा। सो प्रथमहिं मैं तुम्हहि सुनावा।।
मुनि मोहि कछुक काल तहँ राखा। रामचरितमानस तब भाषा।।
सादर मोहि यह कथा सुनाई। पुनि बोले मुनि गिरा सुहाई।।
रामचरित सर गुप्त सुहावा। संभु प्रसाद तात मैं पावा।।
तोहि निज भगत राम कर जानी। ताते मैं सब कहेउँ बखानी।।
राम भगति जिन्ह कें उर नाहीं। कबहुँ न तात कहिअ तिन्ह पाहीं।।
मुनि मोहि बिबिध भाँति समुझावा। मैं सप्रेम मुनि पद सिरु नावा।।
निज कर कमल परसि मम सीसा। हरषित आसिष दीन्ह मुनीसा।।
राम भगति अबिरल उर तोरें। बसिहि सदा प्रसाद अब मोरें।।
दो0--सदा राम प्रिय होहु तुम्ह सुभ गुन भवन अमान।
कामरूप इच्धामरन ग्यान बिराग निधान।।113(क)।।
जेंहिं आश्रम तुम्ह बसब पुनि सुमिरत श्रीभगवंत।
ब्यापिहि तहँ न अबिद्या जोजन एक प्रजंत।।113(ख)।।
काल कर्म गुन दोष सुभाऊ। कछु दुख तुम्हहि न ब्यापिहि काऊ।।
राम रहस्य ललित बिधि नाना। गुप्त प्रगट इतिहास पुराना।।
बिनु श्रम तुम्ह जानब सब सोऊ। नित नव नेह राम पद होऊ।।
जो इच्छा करिहहु मन माहीं। हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।।
सुनि मुनि आसिष सुनु मतिधीरा। ब्रह्मगिरा भइ गगन गँभीरा।।
एवमस्तु तव बच मुनि ग्यानी। यह मम भगत कर्म मन बानी।।
सुनि नभगिरा हरष मोहि भयऊ। प्रेम मगन सब संसय गयऊ।।
करि बिनती मुनि आयसु पाई। पद सरोज पुनि पुनि सिरु नाई।।
हरष सहित एहिं आश्रम आयउँ। प्रभु प्रसाद दुर्लभ बर पायउँ।।
इहाँ बसत मोहि सुनु खग ईसा। बीते कलप सात अरु बीसा।।
करउँ सदा रघुपति गुन गाना। सादर सुनहिं बिहंग सुजाना।।
जब जब अवधपुरीं रघुबीरा। धरहिं भगत हित मनुज सरीरा।।
तब तब जाइ राम पुर रहऊँ। सिसुलीला बिलोकि सुख लहऊँ।।
पुनि उर राखि राम सिसुरूपा। निज आश्रम आवउँ खगभूपा।।
कथा सकल मैं तुम्हहि सुनाई। काग देह जेहिं कारन पाई।।
कहिउँ तात सब प्रस्न तुम्हारी। राम भगति महिमा अति भारी।।
दो0-ताते यह तन मोहि प्रिय भयउ राम पद नेह।
निज प्रभु दरसन पायउँ गए सकल संदेह।।114(क)।।
मासपारायण, उन्तीसवाँ विश्राम
भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप।
मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप।।114(ख)।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217