ग्रामीण आवास और पर्यावास विकास के लिये अभिनव कार्यक्रम Rural Housing Environment Development Scheme
ग्रामीण आवास और पर्यावास विकास के लिये अभिनव कार्यक्रम
वर्ष 1999-2000 से ग्रामीण आवास और पर्यावास विकास से संबंधित विशेष व अभिनव परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ग्रामीण आवास संसाधनों का एक छोटा सा हिस्सा अलग निकालकर रखा गया हैं ।
1. मूलाधार, उद्देश्य और लक्षित समूह
कम लागत वाली पर्यावरण अनुकूल आवास/भवन निर्माण प्रौद्योगिकियों, डिजाइनों और सामग्री का मानकीकरण करना,उन्हें और लोकप्रिय बनाना/बहुगुणित करना, प्रसार करना तथा कृषि-जलवायु के उतार-चढ़ावों और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने में सक्षम ग्रामीण मानव बस्तियों के लिए आदर्श श्रेणियां विकसित करना इस योजना का मूलाधार हैं । ग्रामीण आवास और पर्यावास विकास के लिए इस अभिनव कार्यक्रम का उद्देश्य आधुनिक तथा विश्वसनीय प्रौद्योगिकियों, डिजाइनों और सामग्रियों को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ावा देना/प्रचारित करना हैं । और फिर, चूंकि आवास निर्माण अब केवल चारदीवारी और छत बनाने तक ही सीमित नही रह गया है, बल्कि अब इस में उपयुक्त, स्थायी पर्यावासों का विकास भी सामिल हो गया हैं, बेहतर पर्यावास विकास को बढ़ावा देने वाली पहलों को प्रोत्साहित किया जाएगा ।
इस अभिनव कार्यक्रम के तहत परियोजना संबंधी सहायता के लिए आवेदनकर्ताओं में मान्यताप्राप्त शैक्षिक/तकनीकी संस्थान, प्रौद्योगिकी संवर्द्धन और प्रयोग का अनुभव रखने वाले निगमित निकाय और स्वायत्त सोसाइटियां, राज्य सरकारों तथा विकास संस्थान और ग्रामीण आवास निर्माण तथा पर्यावास आदि के क्षेत्र में प्रसिद्ध तथा अनुभवी विश्वसनीय गैर-सरकारी संगठन शामिल हैं ।
2. परियोजना जांच समिति
इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रस्तुत की जाने वाली परियोजनाओं पर मंजूरी देने के लिए एक केन्द्रीय स्तर की जांच समिति द्वारा विचार किया जाएगा, जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे :
सचिव, ग्रामीण विकास अध्यक्ष
महानिदेशक, कपार्ट सदस्य
अतिरिक्त सचिव एवं वित्तीय परामर्शदाता सदस्य
प्रौद्योगिकी प्रसार के क्षेत्र में कार्यरत एक विश्वसनीय संस्थान का प्रतिनिधि सदस्य
मुख्य परामर्शदाता, योजना आयोग सदस्य
परामर्शदाता (ग्रामीण विकास), योजना आयोग सदस्य
संयुक्त सचिव (ग्रामीण विकास) सदस्य
3. परियोजना निर्माण के लिए व्यापक दिशा-निर्देश -
1. परियोजना में विशेष रूप से आश्रय एवं पर्यावास विकास तथा आधारभूत स्तर पर अंतर-विभागीय और
अंतर-शाखीय क्रियान्वयन सुविधाओं के समेकन के अभिनव तत्व शामिल होने चाहिए ।
2. परियोजना ऐसी होनी चाहिए कि प्रायोगिक अवस्था के पूर्ण होने के बाद इसे कई जगहों पर क्रियान्वित
किया जा सकें ।
3. दूरस्थ, दुर्गम, आपदा प्रभावित और सामाजिक तथा आर्थिक संरचना की दृष्टि से अत्यंत पिछड़े इलाकों
से जुड़ी परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी ।
4. परियोजना में सामान्य विशेषताओं से भी परे कुछ ऐसा होना चाहिए, जिन्हें चालू ग्रामीण आवास कार्यक्रमों
में सामान्य रूप से शामिल किया जा सके ।
5. परियोजना दस्तावेज में स्पष्ट रूप से प्रबंधकीय ढांचे, निगरानी व्यवस्था और क्रियान्वयन दायित्वों का उल्लेख
होना चाहिए ।
6. गैर-सरकारी संगठन को अधिकतम 20 लाख रूपये का अनुदान दिया जा सकता है । प्रसिद्ध
शैक्षणिक/तकनीकी/अनुसंधान संस्थानों तथा डी0 आर0 डी0 ए0/जिला परिषद आदि सहित सरकारी संस्थाओं को अधिकतम
50 लाख रूपये तक का अनुदान दिया जा सकता हैं ।
7. परियोजना की कुल अवधि, सामान्य परिस्थितियों में 2 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
8. परियोजना में पद (पदों) के आवर्ती खर्च या रख-रखाव खर्च की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । लेकिन
परियोजना दस्तावेज में स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख अवश्य होना चाहिए कि इस खर्च को कैसे या कहां से पूरा किया
जाएगा ।
9. परियोजना में ही छीजती वनस्पति (बायोमास), आवास गुणवत्ता, बिगड़ते पर्यावास आदि जैसी विशिष्ट
समस्याओं से निपटने के लिए स्थानीय स्थिति और संसाधन के सम्पूर्ण ऑंकलन पर आधारित सुविचारित नीति का उल्लेख
आवश्यक हैं ।
10. परियोजना दस्तावेज में संभावित लाभार्थियों, लागत-लाभ विवरण, बहुगुण्न संभावनाओं, भौतिक परिसम्पत्तियों
व वित्तीय विकास के रूप में संभावित परिणामों, अन्य गैर-सरकारी संगठनों के साथ सम्पर्क, संसिगत सहयोग आदि का
विवरण भी होना चाहिए ।
11. आवेदक संगठन द्वारा परियोजना अनुलग्नक । में दिेय प्रारूप में दी जायेगी ।
4. वित्ता व्यवस्था का स्वरूप
परियोजना जांच समिति द्वारा स्वीकृति के बाद संस्था को पैसा तीन किस्तों में जारी किया जायेगा जिसका ब्यौरा इस
प्रकार हैं:
40 प्रतिशत - पहली किस्त
40 प्रतिशत - दूसरी किस्त
20 प्रतिशत - तीसरी किस्त
अनुलग्न ॥ तथा ॥। में दिये क्रमश: प्रतिभू बांड और प्री-रिसिप्ट के प्रारूपों को भरने के बाद संस्था को पहली
किस्त जारी की जाएगी ।
लेकिन दूसरी और तीसरी किस्त के जारी करने को मांग से पहले संस्था को अनुलग्नक पअ में दिये प्रारूप के अनुसार
नवीनतम लेखा-परीक्षण रिपोर्ट, उपयोगिता प्रमाण-पत्र और प्रगति रिपोर्ट भर कर देगी । परियोजना के आकलन के बाद ही
संस्था को अंतिम किस्त जारी की जायेगी । यदि आकलन के दौरान संस्था के कार्य को संतोषजनक नहीं पाया गया तो अंतिम
किस्त जारी नहीं की जायेगी । इसके अलावा, पैसा के गलत इस्तेमाल या इस्तेमाल न कर पाने को स्थिति में संगठन को
सारे बचे हुये पैसे को ब्याज समेत एकमुश्त वापिस करने को कहा जायेगा ।
5. निगरानी और आकलन
परियोजना के क्रियान्वयन की निगरानी का काम निपयमित रूप से ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किया जायेगा ।
अनुलग्नक पअ में दिये प्रारूप में संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट के आधार पर ऐसा किया जायेगा ।
परियोजना को समाप्ति पर मंत्रालय द्वारा इसका आकलन किया जायेगा । इसके अलावा ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास यह
विकल्प भी रहेगा कि यदि यह चाहें तो संस्था की परियोजना का आकलन किसी भी समय किसी भी संस्था से करा सकता है ।