S G Vasudev Tree of Life, Oil on canvas
50-60 के दशकों में भारत में अमूर्तकला में कलाकारों द्वारा कला के शब्द रूपों के विकास में तार्किक पक्ष पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता था। जितना कि आकार, रंग और रूप की शुद्धता की खोज पर। स्वर्गीय वासुदेव एस गायतोन्दे ने आत्मनिरीक्षण की प्रकृति से यह पाया कि रंग और रचना विषय या वृतांत से मुक्ति पर बल देने से ही उनकी कला में निखार आ सकता है। उनकी चित्रकारी में जैन की चिंतनशीलता का समावेश है। दो अन्य कलाकार जिन्होंने चित्रपट के दर्शाने प्रस्तुत करने का माध्यम समझा, व जयराम पटेल और स्वर्गीय श्री नसरीन मोहम्दी है। जहां पटेल की प्रस्तुति में गहन भावनाओं के स्पष्ट और सकारात्मक रूप में पेश किया गया है। नसरीन मोहम्दी की चित्रकारी में संयमता से सौन्दर्यता देखने को मिलती है जिसमें किसी विचलन की कोई गुंजाइश नहीं है। चित्रपटों ऐसे अनेक कलाकार हैं जो अमूर्तकला की ओर आकर्षित हुए। इनमें सबसे पहले कलकत्ता के गणेश हलोई का नाम जहन में आता है। प्रगतिशील कलाकार समूहों तथा इन समूहों के प्रवर्तक सदस्य सईद हैदर रज़ा से सम्बद्ध अनेक कलाकारों ने 70 के दशक के बाद अमूर्त कला रोज में प्रयोग किए। उनके इस रूपान्तरित दृष्टिकोण में इस छवि की प्रकृति से संबंधित दर्शन पक्ष से जुड़े मुद्दे भी शामिल थे। राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय एनजीएमए में प्रमुख स्थान पाने वाली कलाकृतियों में कृष्ण खन्ना, जहांगीर सबावाला, रामकुमार, अकबर पदमशे, जगदीश स्वामीनाथन, एरिक बोवेन, मोना राय, बिरेन डे, जीआर. संतोष, ओपी शर्मा, शोहा कादरी, एसजी वासुदेव, प्रबाकर कोल्ट तथा वी विश्वनाथ के नाम उल्लेखनीय है। एनजीएमए में रखे अमूर्त कला के संग्रह में सामग्री रंगों, रूपों तथा बनावट के विविध प्रयोगों को प्रदर्शित किया गया है। इसके अलावा इसमें चित्र और कल्पनाशक्ति के स्तर पर प्रयोग की सरलता के साथ-साथ गहन भोग सुख प्रस्तुत किया गया है।
Mona Rai Illustrated, Mixed Media Manuscript
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217