1870 के बाद से भारतीय कला व्यवहार में उल्लेखनीय परिवर्तन आया। इसके रूपान्तरण में कई धारक सहायक रहे। इनमें से एक धारक था लोगों की रूचि में बदलाव, जिनका झुकाव यूरोपीय सौन्दर्य शास्त्र के बढ़ते चलन के बाद यथार्थवाद की तरफ हो गया। भारत में ब्रिटिश कला विद्यालयों की स्थापना से इस प्रक्रिया को बहुत बल मिला।
शिल्पकारों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से 19वीं सताब्दी के मध्य में शुरू हुए कला विद्यालयों में अधिक शिक्षित और संभ्रान्त वर्ग के विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में प्रवेश लिया। इन विद्यार्थियों ने अपना मुख्य ध्यान ललित कलाओं पर केंद्रित किया न कि उन औद्योगिक कलाओं पर जो ब्रिटिश शासक भारतियों को सिखाना चाहते थे। और उन्होंने शाशवतता कला वस्तु को उसके मूलरूप में प्रस्तुत करना-के पाठ को आत्मसात किया जिससे भारतीय परम्परा की उस संकल्पनात्मक कला के बजाय यथार्थवादी पहलु पर बल दिया, जिसमें यह प्रयास किया जाता है कि किसी विचार को प्रस्तुत किया जाए। यथार्थवाद की सैद्धान्तिक अभिवक्त प्रस्तुत किए जाने का प्रयास किया गया। बम्बई और कलकत्ता के कला विद्यालयों में प्रशिक्षित कलाकारों के समग्र वर्ग के लिए यथार्थवाद की सैद्धान्तिक अभिव्यक्ति एक नया मंज बन गई। ये कलाकार न केवल आकृतियों और प्रकृतिवादी प्रस्तुति में प्रशिक्षित किए गए अपितु इन्हें एक नए माध्यम-तैल के कुशल प्रयोग का ज्ञान भी दिया गया।
Majumdar, H Untitled, Water colour and tempera
इसी समय यद्यपि पस्तोन्जी बोमान्जी जैसे सैद्धान्तिक कला के पूर्व विद्यार्थी 1860 के दशक में सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में प्रशिक्षण ले रहे थे। सुदूर दक्षिण में त्रिवेन्द्रम में एक अदभुत कलाकार उभर रहा था। राजा रवि वर्मा का जन्म ट्रावनकोर रियासत के शासकों से सम्बद्ध शाही घराने में हुआ अन्य सैद्धान्तिक यथार्थवादी है-मंयोशा पीठावाला अन्टोनियो जेवियर त्रिनदाड़े, महादेव विश्वनाथ धुरंधर, सवाला राम लक्ष्मण हलदंकर, जेमिनी प्रकाश गांगुली और हेमेन्द्रनाथ मजूमदार।
Varma, Raja R Women holding a Fruit, Oil on canvas
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217