20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में राष्ट्रवादी लहर में एक नया जोश व उत्साह दिखाई दिया। जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय सांस्कृतिक इतिहास व अध्यात्म की खोज में पुर्नजागरण की शुरूआत हुई। यह उस काल में प्रचिलत विदेशी चित्रावली या माध्यमों में नहीं बल्कि देशीय तकनीक व सामग्री के उपयोग को पुनः प्रचलित करने से हुई। कला में राष्ट्रवादी लहर का नेतृत्व, अबनीन्द्रनाथ टैगोर (1871-1951) व कुछ प्रबुद्ध यूरोपिय जैसे ई.बी. हावेल, जो कि गर्वनमेंट स्कूल ऑफ आर्ट कलकत्ता के प्रधानाचार्य थे, व सिस्टर निर्वोदता जो स्वामी विवेकानन्द की सहयोगी थी, आदि ने किया।
ब्रिटिश व भारतीय बुद्धजीवियों की पसंद से दूर हटकर अबनीन्द्रनाथ ने प्राचीन मिश्रिचित्रों व मध्यकालीन लघुचित्रों से विषय, सामग्री व टेम्परा जैसी तकनीक की प्रेरणा ली। उन्होंने सम्पूर्ण भारतीय कला के दर्शन का विकास किया। जिसका अनुकरण अनेकों उत्साही कलाकारों ने किया। बंगाल की सीमाओं के बाहर भी अनेकों कलाकारों व विद्यार्थियों ने उनकी इस शैली का प्रतिपादन किया और कला में राष्ट्रवादी धारा लाए। उनकी यह शैली ही बंगाल स्कूल के नाम ते जानी जाती है। स्वदेशी आंदोलन के आह्रान के प्रतित्युत्तर में उन्होंने भारतीय कला की देशीय परन्तु आधुनिक शैली का विकास किया जिसमें उन्होंने पश्चिमी शैली को सिरे से नकर दिया जिसे राजा रवि वर्मा जैसे कलाकार प्रयोग में ला रहे थे।
Artist-M.A.R Chughtai
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217