के. सी. एस. पणिक्कर (1911 - 1977)
के. सी. एस. पणिक्कर (1911 - 1977) का पूरा नाम था किष़क्के चिरंपत्त शंकर पणिक्कर । वे भारतीय चित्रकला में नवीनता लाए ।
उन्होंने मद्रास स्कूल नाम से अभिहित चित्रकला प्रवृत्तियों को आगे बढाया और पश्चिमी प्रभाव से मुक्त आधुनिकता को प्रशस्त किया । उन्होंने चोलमण्डलम नामक कलाकार ग्राम स्थापित किया । स्वातंत्र्योत्तर भारतीय चित्र कलाकारों में पणिक्कर का नाम अग्रगणनीय है । पणिक्कर ने उस समय चित्रकला प्रारंभ की जिस समय चित्रकला पर बंगाल स्कूल प्रभाव जमाइ हुई थी। साथ पश्चिमी शैली भी प्रभाव डाल रही थी । पणिक्कर ने दोनों प्रभावों से अपने को बचाये रखा । यद्यपि पणिक्कर केरल के बाहर ही जीवन बिताते थे तथापि उन्होंने अपनी चित्रकला में केरलीय रूपों - दृश्यों को प्रधानता दी । इस प्रकार उन्होंने आधुनिकता में देशीपन बनाए रखा ।
यद्यपि पणिक्कर ने डाक विभाग में कर्मचारी रहते समय चित्र बनाने शुरु कर दिए थे तथापि उन्होंने नौकरी त्याग देने के बाद चित्रकला में प्रशिक्षण प्राप्त किया। सन् 1936 में वे नौकरी छोड़कर मद्रास स्कूल ऑफ आर्ट्स में भर्ती हुए । सन् 1940 में डिप्लोमा पाकर वहीं अध्यापक नियुक्त हो गए ।
दक्षिण भारत में उन दिनों परम्परागत चित्रकला का ही प्राधान्य था । परंतु पणिक्कर उससे भिन्न चित्रकला शैली का स्वप्न देख रहे थे । सन् 1944 में उन्होंने चेन्नै में 'प्रोग्रसिव पैंटेर्स एस्सोसियेशन' नामक संस्था की स्थापना की । इसी के तत्त्वावधान में चित्रकला की आधुनिक प्रवृत्तियों पर चर्चाएँ एवं प्रदर्शनियाँ आयोजित कीं । इन्हीं वर्षों में नवीन चित्रकला शैली का आविर्भाव हुआ था । पणिक्कर ने उन चित्रकला प्रदर्शनियों में भाग लिया था जो चेन्नै, मुम्बई, कोलकात्ता, नई दिल्ली, लंदन आदि नगरों में आयोजित हुई थी । इस काल में उन्होंने जलरंग में अनेक मास्टरपीस रचनायें प्रस्तुत कीं । ये केरलीय ग्रामों के चित्र थे जो नहरों, उद्यानों से भरपूर थे । पणिक्कर को इस बात का ज्ञान हो गया था कि ग्राम चित्रों के सौन्दर्य के चित्रण के लिए सघन तैलरंग से उत्तम है जलरंग । 1954 में वे ललित कला अकादमी, नई दिल्ली की प्रशासन समिति के सदस्य चुने गए । इसी वर्ष इग्लैंड, फ्रांस, स्विटज़रलैंड, इटली आदि देशों की यात्रा की । पणिक्कर की प्रदर्शनी लंदन, पैरिस, लील आदि नगरों में संपन्न हुई । वे 1955 में स्कूल ऑफ आर्ट्स के उप प्राचार्य एवं 1957 में आचार्य बने । दस वर्ष के बाद वे सेवानिवृत्त हुए । इस कालावधि में उन्होंने विदेशों में अनेक प्रदर्शनियाँ लगाईं । इसी बीच मद्रास स्कूल नाम से विख्यात अनेक चित्रकला प्रवृत्तियाँ विकसित हुईं तथा पणिक्कर ने 'चोलमंडलम' की स्थापना की । न्यूयॉर्क में हुए वर्ल्ड आर्ट कांग्रेस (1963), टोक्यो इन्टरनेशनल एक्सिबिशन (1964), लंदन में हुए फेस्टिवल हॉल एक्सिबिशन (1965), वेनीस बिनैल (1967) आदि अन्तराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में पणिक्कर के चित्र लगाए गए । सन् 1966 में चेन्नै के समीपवर्ती प्रदेश इरिञ्चमबाक्कम में पणिक्कर की मानस रचना की 'चोलमंडलम' नामक कलाकार ग्राम की स्थापना हुई । सन् 1968 - 1976 की अवधि में उन्होंने अनेक कला प्रदर्शनियों में भाग लिया । सन् 1976 में ललित कला अकादमी ने उन्हें विशिष्ट सदस्यता प्रदान की । 15 जनवरी 1977 को वे चेन्नै में दिवंगत हुए । दो वर्ष बाद 30 मई 1979 को राज्य सरकार ने तिरुवनन्तपुरम में स्थित संग्रहालय में पणिक्कर के 65 से अधिक चित्रों वाली 'के. सी. एस. पणिक्कर्स गैलरी' आरंभ की ।
पणिक्कर की चित्रकला को कई चरणों में बाँट सकते हैं । 1940 में निर्मित जलरंग चित्र भौगोलिक दृश्यों को प्रस्तुत करते हैं । तत्पश्चात् मानव आकृतियों के चित्र, वाक् और प्रतीकों से भरे अमूर्त्त चित्र प्रस्तुत किए गए । मानव आकृतियों के जो चित्र निर्मित हुए वे उनकी कला विकास के कई चरण प्रस्तुत करते हैं । इनमें माँ और बच्चा (1954), पापिनी (1956), लाल रंग का कमरा (1960) आदि चित्र प्रमुख हैं । इस कालखण्ड के उनके दूसरे प्रमुख चित्र हैं - नर्त्तकियाँ, मन्दिर की ओर, पीटर का तिरस्कार, भीड़ में ईसा मसीह, नृत्य करती लड़की आदि । पणिक्कर के अमूर्त्त चित्रों के उदाहरण हैं वाक् और प्रतीक चित्र परंपरा । इन चित्रों में प्रयुक्त मोटिफ्स केरलीय परंपरा से स्वीकृत हैं ।
पणिक्कर के नेतृत्व में कलाकारों का जो संघ बना वह मद्रास स्कूल नाम से जाना जाता है । किसी वस्तु की आकृति में रेखा को प्राधान्य देना मद्रास स्कूल की देन है। मद्रास स्कूल के निपुण चित्र कलाकार हैं - संतानराज, आदिमूलम्, रेड्डप्पा नायडु, एम. वी. देवन, अक्कित्तम नारायणन, रामानुजम, के. वी. हरिदासन, नंपूतिरि, टी. के. पद्मिनी, पैरिस विश्वनाथन, पी. गोपीनाथ, ए. सी. के राजा, डग्लस, एन्टनीदास, अलफोन्सो, एस. जी. वासुदेव आदि । साठ का दशक मद्रास स्कूल का सुवर्णकाल माना जाता है । यही वह काल था जब साहित्य और कला आधुनिकता (Modernism) से प्रभावित हो रहे थे ।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217