Jagdish Swaminathan Memory's Journey, Oil on canvas
1940 और 1950 के दशकों के बाद जिनमें स्कूल ऑफ पेरिस के सौन्दर्यपरक मूर्तियों की प्रधानता रही, 1960 में दशक में भारतीय कला परिदृश्य में दियागत परिवर्तन आया पारम्परिक भारतीय कला की भाषा की एक बार फिर मांग हुई कलाकारों ने सक्रीय रूप से पारम्परिक चित्रभाषा के साथ संवाद किया और अपने ही प्रसंगों की पुनः परिकल्पना की। नई दिल्ली में कलाकार और सौन्दर्यशास्त्री, जगदीश स्वामीनाथन ने औपनिवेशक ताकतों द्वारा प्रतिपादित आधुनिक सौन्दर्यर्वाद का विरोध किया। कला भवन, शान्तीनिकेतन में प्रशिक्षित प्रो.के.जी. सुब्रमण्यन् ने अपनी ओर से सहयोग के रूपमें शांति जिसमें इस बात पर बल दिया गया कि पारम्परिक चित्रभाषा समृद्ध ऐतिहासिक साधन है। उन्होंने आधुनिकवादी की संवेदनशीलता के साथ पारम्परिक तत्वों का प्रयोग किया और चित्रभाषा को एक नई दिशा दी। 1960 के दशक के प्रारंभ में राष्ट्रवाद की सशक्त भावना उभरकर आयी। कलाकारों ने चित्रों के पारम्परिक स्रोतों को नए नजरिए से देखना शुरु कर दिया। कई जगह कलकत्ता में गणेश पाइन, जिनकी निजी संवेदनशीलताओं ने उन्हें अपनी विरासत के अध्ययन में लगा दिया, जैसे कलाकारों ने भी परम्परा की ओर झुकाव कर लिया।
'Day dreaming' by Jogen Chowdhur
पेरिस में यूरोपीय कला से सामना होने के बाद जोगेन चौधरी ने कुछ समय के लिए काम करना बंद कर दिया और ऐसी चित्र भाषा विकसित करने के लिए लौट आए जसमें स्थानीय परम्पराओं की गूंज सुनाई दी शास्त्रीय, लोक तथा लोकप्रिय परम्पराओं ने बड़ौदा में अनेक कलाकारों की कल्पना में रंग भर दिए, जहां सुब्रमण्यन ने एक उतप्रेरक की भूमिका अदा की। बड़ौदा में सृजनात्मक जोश ने वृतांत माध्यम और आकृति चित्रण पर बल दिया। गुलाम मोहम्मद शेख भूपेन खक्खर, ज्योति भट्ट, नीलिमा शेख, लक्ष्मा गौड़ तथा अन्य चित्रकारों ने एक नया माध्यम विकसित किया। ये कलाकार अतीत की प्रथाओं तथा सजीव परम्पराओं से प्रेरित थे। इन्होंने भीति-चित्रों, लघु-चित्रों,प्रकाशमय पाण्डुलिपयों तथा पुस्तकों को नए नजरिए से देखा।
Laxma Goud Untitled, Mixed Media
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217