K G Subramanyan Goddess at Goalpara
सत्तर के दशक में महज मामूली चीजों को जादुई आकर्षण प्रदान करने के लिए कलाकारों ने कथात्मक माध्यमों का उपयोग किया है। वे मिथकीय तत्वों को स्मरण पटल पर रखते हैं। निजी भय और अंदेशाओं को अभिव्यक्त करने के लिए फंतासी का उपयोग करते हैं - अक्सर उन्हें स्वप्न की तीव्रता प्रदान करते हैं। एनजीएमए में उपस्थित केजी सुब्रामण्यन् की 'गोलपारा की देवी' एक रोचक ग्रामीण चित्र है जिसमें चतुर्भुज देवी को महिषासुर को खदेड़ते दिखाया गया है। दूसरे स्तर पर ए रामचंद्रन सामयिक तत्वों को समयातीत भाव प्रदान करते दिखते हैं। इनकार्नेशन यानी अवतार में एक सुंदर जनजातीय महिला एक कछुए पर खड़ी है। जंगल की आग की लपटों के फ्रेम में यह चित्र कलाकार का आत्मचित्र भी है। मुंबई के प्रभाकर बरवे एक अन्य कलाकार हैं जो अपने चित्रों को पराभौतिक आयाम देते हैं। एनजीएमए में उपलब्ध ब्लू लेक में कैनवस की सतह पर तैरती मछली की आकृतियां और उनके अस्थिपिंजर के प्रतिबिम्ब, स्वप्न दृश्यों के टूटते संदर्भ, और अंतिम सत्य की अनुभूति देते हैं। के खोसा की कृतियां मेटा-रियलीटी में सराबोर है। ए हैपनिंग स्पष्टतः काफ्का की काल्पनिक दुनिया में बसी है जिसमें वास्तविक तथ्य रहस्य में लिफ्ट जाते हैं, अस्वाभाविक गुणवत्ता धारण कर लेते हैं। माधवी पारेख की मिथकीय दुनिया गुजरात के लोक एवं जनजातीय चित्र से जगमग है। गोगी सरोज पाल के लिए मिथकीय चित्र एक व्यक्तिगत मिथक की अभिव्यक्ति है। यह पुरुष प्रधान समाज में महिला की संरचना से संबद्ध है। निजी मिथक से गणेश पाइन के छायापूर्ण चित्र की दुनिया का भी पता चलता है। अस्तित्व की विभिन्न परतों में व्याप्त होता अंदेशा एक नाभि से जुड़े होने की अनुभूति देता है। साठ के दशक के उत्तरार्द्ध और सत्तर के दशक के आरंभ में जोगेन चौधरी ने कामुक फंतासियों को सार्वजनिक कर दिया। ये फंतासी रात के माहौल में जीवंत होते दिखते हैं। अमित एवं धर्मनारायण दासगुप्ता ने फंतासी के चित्रों में एक मनमौजी भाव का संचार कर दिया। 1970 एवं 1980 के दशक के कलाकारों के चित्रों में सशक्त मिथकीय या फंतासी के तत्व अगले दशक के कलाकारों के सामने में अन्वेषण के विषय बने रहे जिससे चित्र स्वरूप भाषा को नया जीवन मिला।
Gogi Saroj Pal, Hat Yogini Shakti
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217