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Tanjor art

तंजौर कला

यह लोक कला कहानी किस्से सुनाने की विस्मृत कला से जुड़ी है। भारत के हर प्रदेश मे चित्रों का प्रयोग किसी बात की अभिव्यक्ति दृश्य चित्रण के माध्यम से करने के लिए किया जाता है जो कथन का ही एक प्रतिपक्षी रूप है। राजस्थान, गुजरात और बंगाल के ये कला रूप स्था‍न विशेष के वीरों और देवताओं की पौराणिक कथाएं सुनाती हैं और हमारे प्राचीन वैभव और भव्य सांस्कृतिक विरासत का बहुमूर्तिदर्शी चित्रण किया है। हर कृति अपने आप में एक पूर्ण वृतान्तन है जो प्राचीन काल की एक झांकी प्रस्तुत करती है जिसे हमारे कलाकारों की प्रवीणता और निष्ठार ने जीवित रखा है।

एक राजसी विरासत वाले धार्मिक चित्र तंजावर चित्रकारी, जिसे अब तंजौर चित्रकारी के नाम से जाना जाता है, की सर्वोत्तम परिभाषा है। तंजौर की चित्रकारी महान पारम्परिक कला रूपों में से है जिसने भारत को विश्वे प्रसिद्ध बनाया है। इनका विषय मूलत: पौराणिक है। ये धार्मिक चित्र दर्शाते हैं कि आध्यात्मिकता रचनात्मक कार्य का सार है। कला के कुछ रूप ही तंजौर की चित्रकारी की सुन्दररता और भव्यचता से मेल खाते हैं।

चेन्नई से 300 कि.मी. दूर तंजावुर में शुरू हुई यह कला चोल साम्राज्यद के राज्यरकाल मे सांस्कृतिक विकास की ऊंचाई पर पहुंची। इसके बाद आने वाले शासकों के संरक्षण में यह कला आगे और समृद्ध हुई। शुरू में ये भव्य चित्र राजभवनों की शोभा बढ़ाते थे लेकिन बाद में ये घर-घर में सजने लगे। कला और शिल्पं दोनों का एक विलक्षण मिश्रित रूप तंजौर की इस चित्रकारी का विषय मुख्य रूप से हिन्दू देवता और देवियां हें। कृष्णर इनके प्रिय देव थे जिनके विभिन्नू मुद्राओं में चित्र बनाए गए है जो उनके जीवन की विभिन्न अवस्थायओं को व्यक्त करते हैं। तंजौर चित्रकारी की मुख्य विशेषताएं उनकी बेहतरीन रंग सज्जा, रत्नों और कांच से गढ़े गए सुन्दनर आभूषणों की सजावट और उल्लेखनीय स्वखर्णपत्रक का काम हैं। स्वगर्णपदक और बहुमूल्य और अर्द्ध-मूल्यए पत्थरों के भरपूर प्रयोग ने चित्रों को भव्य रूप प्रदान किया है। इन्हों ने तस्वीरों में इस कदर जान डाल दी हैं कि ये तस्वीरें एक विलक्षण रूप में सजीव प्रतीत होती हैं। मानिक, हीरे और अन्यो मूल्यसवान रत्न -मणियों से जडित और स्वर्ण-पदक से सजी तंजौर के ये चित्र एक असली खजाना थे। लेकिन, आजकल, असली रत्नव-मणियों की जगह अर्द्ध-मूल्यंवान रत्नोंस का प्रयोग किया जाता है पर स्वकर्ण-पत्रक का प्रयोग नहीं बदला है। तंजौर शैली की चित्रकारी में प्रयुक्ति स्वर्ण पत्रकों की चमक और आभा सदैव बनी रहेगी।

भारत के प्रसिद्ध लोक एवं जनजातीय जनजाति कला

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