भारी कहौं तो बहु डरौं, हलका कहूं तौ झूठ |
मैं का जाणौं राम कूं, नैनूं कबहूँ न दीठ ||1||
भावार्थ - अपने राम को मैं यदि भारी कहता हूँ, तो डर लगता है,
इसलिए कि कितना भारी है वह |
और, उसे हलका कहता हूँ तो यह झूठ होगा | मैं क्या जानूँ उसे कि वह कैसा है,
इन आँखों से तो उसे कभी देखा नहीं |सचमुच वह अनिर्वचनीय है,
वाणी की पहुँच नहीं उस तक |
दीठा है तो कस कहूँ, कह्या न को पतियाय |
हरि जैसा है तैसा रहो, तू हरषि-हरषि गुण गाइ ||2||
भावार्थ - उसे यदि देखा भी है, तो वर्णन कैसे करूँ उसका ?
वर्णन करता हूँ तो कौन विश्वास करेगा ? हरि जैसा है, वैसा है |
तू तो आनन्द में मग्न होकर उसके गुण गाता रह
वर्णन के ऊहापोह में मन को न पड़ने दे |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217