बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ्या कलंक |
और पखेरू पी गये , हंस न बोवे चंच ||9||
भावार्थ - बगुली ने चोंच डुबोकर सागर का पानी जूठा कर डाला !
सागर सारा ही कलंकित हो गया उससे |और दूसरे पक्षी तो उसे पी-पीकर उड़ गये,
पर हंस ही ऐसा था, जिसने अपनी चोंच उसमें नहीं डुबोई |
`कबीर' माया जिनि मिले, सौ बरियाँ दे बाँह |
नारद से मुनियर मिले, किसो भरोसौ त्याँह ||10||
भावार्थ - कबीर कहते हैं -अरे भाई, यह माया तुम्हारे गले में बाहें डालकर भी सौ-सौ
बार बुलाये, तो भी इससे मिलना-जुलना अच्छा नहीं |
जबकि नारद-सरीखे मुनिवरों को यह समूचा ही निगल गई, तब इसका विश्वास क्या ?
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217