`कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर |
तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ||1||
भावार्थ - कबीर कहते हैं -मेरा मन जब मर गया और शरीर सूखकर कांटा हो गया, तब,
हरि मेरे पीछे लगे फिरने मेरा नाम पुकार-पुकारकर-
`अय कबीर ! अय कबीर !'- उलटे वह मेरा जप करने लगे |
जीवन थैं मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ |
मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ||2||
भावार्थ - इस जीने से तो मरना कहीं अच्छा ; मगर मरने-मरने में अन्तर है |
अगर कोई मरना जानता हो, जीते-जीते ही मर जाय |
मरने से पहले ही जो मर गया, वह दूसरे ही क्षण अजर और अमर हो गया |
[जिसने अपनी वासनाओं को मार दिया, वह शरीर रहते हुए भी मृतक अर्थात मुक्त है|]
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217