बारी बारी आपणीं, चले पियारे म्यंत |
तेरी बारी रे जिया , नेड़ी आवै निंत ||3||
भावार्थ - अपने प्यारे संगी-साथी और मित्र बारी-बारी से विदा हो रहे हैं,
अब, मेरे जीव, तेरी भी बारी रोज-रोज नजदीक आती जा रही है |
जो ऊग्या सो आंथवै, फूल्या सो कुमिलाइ |
जो चिणियां सो ढहि पड़ै, जो आया सो जाइ ||4||
भावार्थ - जिसका उदय हुआ, उसका अस्त होगा ही; जो फूल खिल उठा, वह कुम्हलायगा ही ;
जो मकान चिना गया, वह कभी-न-कभी तो गिरेगा ही;
और जो भी दुनियाँ में आया, उसे एक न एक दिन कूच करना ही है |
गोव्यंद के गुण बहुत हैं, लिखे जु हिरदै मांहिं |
डरता पाणी ना पीऊँ , मति वै धोये जाहिं ||5||
भावार्थ - कितने सारे गोविन्द के गुण मेरे हृदय में लिखे हुए हैं, कोई गिनती नहीं
उनकी | पानी मैं डरते-डरते पीता हूँ कि कहीं वे गुण धुल न जायं |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217