(जन्म 1926 ई.)
अनंत कुमार पाषाण का जन्म इंदौर में हुआ। सेंट स्टीफेन कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम.ए. किया। सम्प्रति ये बम्बई में रहते हैं तथा व्यवसाय व अध्यापन-कार्य करते हैं। इनकी मुख्य रचनाएं हैं : ' 'स्फुट कविताएं तथा 'लौटो सिन्दबाद (कविता संग्रह) 'धीमे धीमे (उपन्यास) 'गुलाबी अंधेरा (दीर्घ कथा)। इन्होंने हिन्दी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद भी किए हैं।
टर्मिनस
दो तेज रेलगाडियों की तरह
हम एक-दूसरे के पास से गुजर गए,
एक की लम्बाई से दूसरे की लम्बाई नप गई।
छूट गए पटरी-से जीवन के सारे क्रम,
तब तक तो दोनों ने कितने ही स्टेशन,
गांव, खेत पार किए,
और विपरीत दिशाओं में
दूर-दूर बढ गए...
दोष तीव्र गति का है,
वेग की मर्यादा होनी चाहिए,
नहीं तो इसी तरह दुरियां बढती हैं,
फासले जितने ही तय करो
उतने ही बढते हैं।
कहीं कोई टर्मिनस शायद ऐसा भी हो,
जहां रेलगाडियां
सभी रुक जाती हैं।
जीवन
छोडो भी, ऐसा तो जीवन में होता है,
जो कभी मिलता है, वह कभी छिनता है।
लेकिन इससे डरकर
संध्या के सिंदूरी प्रकाश में
मंजरित तुलसी के
नीचे दीया
जलाना थोडे ही बंद किया जाता है।
भगवान बात सुनें, न सुनें,
तो भी मंदिर तो मंदिर ही है,
उसमें जो रोज शाम दीया नहीं जलाता है,
वह तो घर लौटने के अपने ही मार्ग पर
अंधेरा फैलाता है।
उजडा घर
कल मैं उस मकान में जा कर,
रहा ढूंढता तुमको दिन भर,
जिसके उस पीले बरामदे में हम चाय पिया करते थे।
मोटे कप, भद्दी तश्तरियां,
सरकंडे की मेज-कुर्सियां
प्याले बने चाय के ठंडे हो जाते थे पडे-पडे ही-
हम गुमसुम खोए, ऊबे-से, केवल देख लिया करते थे।
दूर पहाडी पर, खुट्-खुट् कर, टट्टू झुके-झुके जाते थे,
धुंधला शहर डूब जाता था,
सहसा रात उतर आती थी!
चौडा था मैदान सामने, आदमकद झाडियां खडी थीं,
काले ताडों की आकृतियां और अधिक गहरा जाती थीं।
बजता बिगुल छावनी में था, फिर खामोशी-सी छाती थी,
शीशे के गिलास का पानी, कंप कर सिहर-सिहर जाता था।
पवन बाग के फाटक तक आ,
क्या जाने क्या सोच अचानक रुक जाता था!
स्वेटर चढा कोहिनी तक तुम, हाथ धरे अपनी गोदी में,
बैठी रहती थीं गुमसुम हो, मैं अधीर तब हो जाता था
जमुहाई लेकर उठती थीं, फिर नर-नारी का वह जोडा
काले पडते हुए क्षितिज में, दूर कहीं पर खो जाता था!
जुदा-जुदा होती थीं राहें, सडक लौट जाती थी वापस,
टूटी हुई नींद में छूटा, वह मकान बस रह जाता था-
खुली खिडकियां औ दरवाजे सूना-सूना सा बरामदा,
पानी अपनी थाह नाप कर, वापस तट से टकराता था!
कल मैं उस मकान में जाकर
रहा ढूंढता तुमको दिन भर...
शाम हो गई, रात आ गई,
ठंडी हवा हो गई भारी-
खाली था मकान, दरवाजे,
बंद पडे थे, एक मौन था
किंतु न तुम थीं, और न मैं था,
एक प्रेत भर भटक रहा था!
ठंडी भर कर सांस, निकल मैं
आया उस हाते के बाहर,
परिचित कोईमुख उठ आया
तारों की बागड के ऊपर!
मुड कर देखा, निर्निमेष दृग
चांद खडा था!
पवन मंद था!
मैं था औ मेरी छाया थी,
औ मकान वह पडा बंद था!
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217